श्रीराम जी बाल रूप में |
दैनिक हिंदुस्तान में 21 जनवरी को प्रकाशित |
एक ग़ज़ल -कौशल्या माँ के लल्ला की बड़ी मोहक अदाएँ हैं
मनुज, गंधर्व,सुर, किन्नर, तपस्वी, अप्सराएं हैं
प्रभु श्रीराम के स्वागत में सब दीपक जलाए हैं
अभी भी पंचवटियों में कई मारीचि बैठे हैं
हमारे दौर में भी कैकयी और मंथराएं हैं
कोई भूखा न सोये रात में सरयू की गोदी में
हमारे सिक्ख भाई प्यार से लंगर सजाए हैं
भरत, हनुमान, शबरी, नील नल, सुग्रीव प्रमुदित हैं
चलो स्वागत करें पाहुन कई मिथिला से आए हैं
सनातन धर्म के माथे का चंदन अब नहीं छूटे
यशस्वी हो ये भारत भूमि सबकी प्रार्थनाएं हैं
निगाहें साफ़ कर देखो तो मेरे राम सबके हैं
उन्हीं से सृष्टि का सौंदर्य वेदों की ऋचाएँ हैं
कमल से नैन, मृदु भाषा, सुकोमल देह श्यामल सी
कौशल्या माँ के लल्ला की बड़ी मोहक अदाएँ हैं
ग़ज़लकर /कवि
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 13 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
Deleteकमल से नैन, मृदु भाषा, सुकोमल देह श्यामल सी
ReplyDeleteकौशल्या माँ के लल्ला की बड़ी मोहक अदाएँ हैं
बहुत सुन्दर !! प्रभु श्रीराम की आराधना में समर्पित सुन्दर सृजन । सादर नमन ।
हार्दिक आभार आपका. सादर नमस्कार
Deleteविश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteकमल से नैन, मृदु भाषा, सुकोमल देह श्यामल सी
ReplyDeleteकौशल्या माँ के लल्ला की बड़ी मोहक अदाएँ हैं
वाह!!!!
बहुत ही मनभावन लाजवाब गजल ।
जय श्रीराम. आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
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