Friday, 24 November 2023

एक गीत -आओ फिर पाँच जोड़ बॉसुरी बजायें

चित्र साभार गूगल 


एक गीत -आओ फिर "पाँच जोड़ बॉसुरी" बजायें


आओ फिर

"पाँच जोड़

बॉसुरी" बजायें.

ठूँठ पेड़

बंज़र के

गीत गुनगुनायें.


चाँद को

बहुत देखा

भूख प्यास लिखना,

प्यास भरी

बस्ती में

गंगा सा दिखना,

धूप से

मुख़ातिब हों

तरु की छायायें.


सूखती नदी

के तट

फूलों का खिलना,

पगडण्डी

ओस भरे

खेतों से मिलना,

हिरनों की

टोली संग

चरती हों गायें.


घिसे -पिटे

बिम्बोँ

उपमानों से निकलें,

गीतों का

तंत्र मंत औ

तिलस्म बदलें,

गौरैया

बनकर फिर

धूल में नहायें.

कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


12 comments:

  1. घिसे-पिटे बिम्बों उपमानों से निकलें, गीतों का तंत्र-मंत्र औ' तिलस्म बदलें। आपने तो मेरे मन की बात कह दी आदरणीय तुषार जी। आपकी रचना निश्चय ही इस निकष पर खरी उतरती है, अनूठी है एवं उत्कृष्टता के शिखर को स्पर्श करती है।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय. आपकी टिप्पणी लिखने के लिए नई ऊर्जा प्रदान करती है.

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 26 नवम्बर 2023 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन

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  3. उत्कृष्ट रचना

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  4. वाह!! नये नये बिंबों से सजी सुंदर रचना

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    1. आपका हार्दिक आभार. सादर अभिवादन

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  5. बेहतरीन सृजन आदरणीय 🙏

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    1. आपका हृदय से आभार आदरणीया. सादर अभिवादन आपको

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