चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -किस्सागोई चाहिए अच्छे फ़साने के लिए
काटिए मत पेड़ बस्ती को बसाने के लिए
इक परिंदा चाहिए जंगल में गाने के लिए
किस कदर बेजान हैं बच्चे खिलौनों की तरह
फूल, तितली कुछ नहीं उनको हँसाने के लिए
कौन दरिया है जहाँ तूफ़ान का खतरा नहीं
डूबना पड़ता है डूबे को बचाने के लिए
साज, साजिन्दे, सियासत की तरह दिन में अलग
शाम को बैठेंगे सब ठुमरी सुनाने के लिए
आपसी रंजिश में पेड़ों से दहकते ये धुंए
आग का क्या काम है जंगल जलाने के लिए
प्यार, धोखा, जुर्म, रंजिश और तिलस्मी ही नहीं
किस्सागोई चाहिए अच्छे फ़साने के लिए
कितनी कोशिश करते हैं हम कैमरे के सामने
एक अच्छी सी कोई तस्वीर पाने के लिए
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 31 अगस्त 2023 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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हार्दिक आभार भाई
Deleteबढ़िया सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteआपके द्वारा स्थापित उच्च मानदंडों पर खरी उतरती हुई श्रेष्ठ ग़ज़ल है यह तुषार जी। संलग्न चित्र सोने पे सुहागा हैं।
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई साहब. सादर अभिवादन सहित
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteबधाई
हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
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