Monday, 19 June 2023

एक गीत -एक भी आसाढ़ में बादल नहीं है

चित्र साभार गूगल 


प्रकृति अपने धर्म को भूल गई है या हमसे बदला ले रही है. प्रकृति का अंधाधुंध दोहन आज मौसम को बदरंग बना रहा है. आसाढ़ में भी एक भी बादल नहीं हैं. आकाश सुना है झीलें जलविहीन. गीत इसी निराशा की बानगी है. एक प्रयास है. सादर इंद्र देवता कृपा करे.


एक गीत -गीत में वंशी नहीं मादल नहीं है


पृष्ठ सूने हैं

किताबों के

गीत में वंशी नहीं मादल नहीं है.

कौन ऋतुओं से

भला पूछे

एक भी आसाढ़ में बादल नहीं है.


हरे पत्ते

धूप में पीले

पाँख खुजलाती हुई चिड़िया,

गंध वाले

फूल मुरझाए

तितलियों को ढूंढती गुड़िया,

पाँव नंगे आँख में काजल नहीं है.


मानसूनों की

किताबों में 

मेघ -जल का उद्धरण क्यों है,

चाँदनी की

सुभग रातों में

धूप का वातावरण क्यों है?

मत्स्य गंधा

झील में जलकुंभियाँ

क्या हुआ कि एक भी शतदल नहीं है.


मौसमों के

सगुन पंछी अब

रात -दिन तूफ़ान लाते हैं,

प्यास से

व्याकुल परिंदे, वन

बेसुरे हर गीत गाते हैं,

घिस रहा हूँ मैं जिसे संदल नहीं है.


कवि -जयकृष्ण राय तुषार


चित्र साभार गूगल 

14 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति

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    1. हार्दिक आभार. सादर प्रणाम

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 20 जून 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा धन्यवाद!

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  3. Replies
    1. हार्दिक आभार. सादर अभिवादन सहित

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २० जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    Replies
    1. आपको सादर अभिवादन. हार्दिक आभार सहित

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  5. बदलते हुए मौसम का मिज़ाज पढ़ती हुई सुंदर रचना

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया अनीता जी. सादर नमस्ते

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  6. प्रकृति जब क्रिया के फलस्वरूप प्रतिक्रिया देती है तो उसके परिणाम बेहद कष्टकारी होते हैं।
    गहन चिंतन उकेरती सराहनीय रचना सर।
    सादर।

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    1. सादर अभिवादन देवि. हार्दिक आभार

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  7. मानसूनों की

    किताबों में

    मेघ -जल का उद्धरण क्यों है,

    चाँदनी की

    सुभग रातों में

    धूप का वातावरण क्यों है?
    सठे साठ्यम् समाचचरेत् का पालन करनी लगी है प्रकृति भी अब शायद...
    बहुत ही लाजवाब गीत
    👌👌👌🙏🙏🙏

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    1. सादर प्रणाम. हार्दिक आभार

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