Wednesday 16 June 2021

एक गीत -पारदर्शी जल नदी का



एक गीत-पारदर्शी जल नदी का


पारदर्शी जल

नदी का और

जल में मछलियाँ हैं ।

गा रहा सावन

फिरोज़ी होंठ

वाली कजलियाँ हैं ।


उड़ रहे बादल

हवा में 

खेत-जंगल सब हरे हैं,

खिड़कियों में

आ रही बौछार

बादल सिरफ़िरे हैं 

सूर्य को

बन्धक बनाये

खिलखिलाती बिजलियाँ हैं ।


झील में 

नीले-गुलाबी

कमल फिर खिलने लगे हैं,

सांध्य बेला से

तनिक पहले

दिए जलने लगे हैं,

खुशबुओं के

पँख फैलाये

हवा में तितलियाँ हैं ।


कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


8 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17-06-2021को चर्चा – 4,098 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. प्राकृतिक छटा बिखेरती सुन्दर रचना ।

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  3. शब्द यूं रचे हैं आपने तुषार जी कि पढ़ते-पढ़ते लगता है जैसे वे दृश्य नयनों के सम्मुख ही हैं तथा हम उनसे आनंदित हो रहे हैं।

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  4. प्रकृति की छटा को सुंदर शब्दों से सजाया है आपने सुंदर सृजन ।

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