एक गीत-पारदर्शी जल नदी का
पारदर्शी जल
नदी का और
जल में मछलियाँ हैं ।
गा रहा सावन
फिरोज़ी होंठ
वाली कजलियाँ हैं ।
उड़ रहे बादल
हवा में
खेत-जंगल सब हरे हैं,
खिड़कियों में
आ रही बौछार
बादल सिरफ़िरे हैं
सूर्य को
बन्धक बनाये
खिलखिलाती बिजलियाँ हैं ।
झील में
नीले-गुलाबी
कमल फिर खिलने लगे हैं,
सांध्य बेला से
तनिक पहले
दिए जलने लगे हैं,
खुशबुओं के
पँख फैलाये
हवा में तितलियाँ हैं ।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17-06-2021को चर्चा – 4,098 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
हार्दिक आभार आपका
Deleteप्राकृतिक छटा बिखेरती सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteशब्द यूं रचे हैं आपने तुषार जी कि पढ़ते-पढ़ते लगता है जैसे वे दृश्य नयनों के सम्मुख ही हैं तथा हम उनसे आनंदित हो रहे हैं।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सर।
Deleteप्रकृति की छटा को सुंदर शब्दों से सजाया है आपने सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteसुन्दर चित्रमय गीत
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