Saturday, 26 June 2021

एक लोकभाषा गीत-माटी कै अपने बखान करा भइया

 

चित्र साभार गूगल


एकगीत-लोकभाषा

माटी कै अपने बखान करा भइया


माटी कै अपने बखान करा भइया

झुलसै न हरियर सिवान करा भइया

शंख बजै मन्त्र पढ़ै

गाँव कै शिवाला

सुबह शाम रोज 

जपै तुलसी कै माला

परदेसी कै बांचै

कुशल क्षेम पाती

घर घर में मंगल हो

शगुन दिया बाती

बड़े और बूढ़न कै मान करा भइया

माटी कै.....


धरम करम भूला मत-

संस्कार छोड़ा

भटकै जे ओके

सही रस्ते पे मोड़ा

अइसन न कहीं नदी

धरा आसमान बा

सिद्ध, संत देव,मनुज

सबै क मकान बा

कुछ धन कै संचय कुछ दान करा भइया 

माटी कै .....


बरखा में पीपल और

नीम के लगावा 

शुद्ध हवा पानी से

रोग सब भगावा

गउवाँ त आपन

ई देस कै परान बा

एही में किसान

अउर एही में जवान बा

आपस में द्वेष ना मिलान करा भइया 


कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल



Friday, 18 June 2021

एक गीत आस्था का-असुरों की आँखों में चुभते हैं राम

 


आस्था का गीत


असुरों की

आँखों में

चुभते हैं राम ।

सरयू तो

पावन है

एक दिव्य धाम ।


त्रेता में

राम मिले

और मिली सीता,

द्वापर में

कृष्ण दिए

कालजयी गीता,

सत्य और

सनातन है 

जो उसे प्रणाम ।


अनगिन

सूरज-तारे

जिससे पाते प्रकाश,

बाल्मीकि

तुलसी के

हो जाते वही दास,

स्वर्णपुरी

लंका से

उनको क्या काम ।


भक्ति,ज्ञान

धर्म,कर्म

जिनके अनुयायी हैं,

राम तो

सभी के हैं

हर पल सुखदायी हैं ,

निर्गुण और

सगुण सभी

जपते हैं राम ।


मातृभक्ति

पितृ भक्ति

गुरुकुल का गर्व राम,

वनवासी

योगी और

संस्कृति का पर्व राम,

काठ की

खड़ाऊँ में

बसे चार धाम ।


कवि-जयकृष्ण राय तुषार



Wednesday, 16 June 2021

एक गीत -पारदर्शी जल नदी का



एक गीत-पारदर्शी जल नदी का


पारदर्शी जल

नदी का और

जल में मछलियाँ हैं ।

गा रहा सावन

फिरोज़ी होंठ

वाली कजलियाँ हैं ।


उड़ रहे बादल

हवा में 

खेत-जंगल सब हरे हैं,

खिड़कियों में

आ रही बौछार

बादल सिरफ़िरे हैं 

सूर्य को

बन्धक बनाये

खिलखिलाती बिजलियाँ हैं ।


झील में 

नीले-गुलाबी

कमल फिर खिलने लगे हैं,

सांध्य बेला से

तनिक पहले

दिए जलने लगे हैं,

खुशबुओं के

पँख फैलाये

हवा में तितलियाँ हैं ।


कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Monday, 14 June 2021

एक मौसमी गीत-होठों पे गीत लिए रोपेंगे धान

चित्र साभार गूगल


एक गीत-

होठों पे 

गीत लिए

रोपेंगे धान ।

धानों के

साथ

हरे होंगे ये पान ।


फूलों पर

खुश होगी

तितली की रानी,

रिमझिम

बरसो बादल

खेतों में पानी ,

चुप्पी को

तोड़ेंगे

हँसकर दालान ।


देखूँगा

बेला के फूल

नहीं तोडूंगा,

खिले-खिले

गुड़हल की

शाख नहीं छोड़ूँगा,

झुमके को

ढूँढेंगे

इधर-उधर कान ।


तेज धार

पानी में

हाँफती मछलियाँ,

पलछिन बदले

मौसम

कौंधतीं बिजलियाँ,

सबकी

अपनी वंशी

राग और तान ।


कवि-जयकृष्ण राय तुषार



एक पुराना होली गीत. अबकी होली में

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