चित्र -साभार गूगल |
एक गीत -
काँटों का मौसम फूलों का खिलना मुश्किल है
रिश्तों में
दो गज की दूरी
मिलना मुश्किल है |
काँटों का
मौसम फूलों
का खिलना मुश्किल है |
का खिलना मुश्किल है |
खत्म हुए
सम्वाद शहर के
रिश्ते गाँवों के ,
क़िस्से
सुनते रहे
राजपथ दुखते पाँवों के ,
इतना
सूरज थका
शाम को ढलना मुश्किल है |
कभी हाथ
में हाथ तुम्हारा
लेकर चलते थे ,
कुछ होंठों
कुछ आँखों से
सम्वाद निकलते थे ,
भूल गये
चाँदनी
रात को मिलना मुश्किल है |
रोशनियों
की करो प्रतीक्षा
हार नहीं अच्छी ,
जीवन के
संघर्षों से
तकरार नहीं अच्छी ,
बिना आँच
के हिम रिश्तों
का गलना मुश्किल है |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3736
ReplyDeleteमें दिया गया है। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर गीत।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुन्दर काव्य
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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