एक गीत-वासंती पाठ पढ़े मौसम
नयनों के
खारे जल से
भींग रहे अँजुरी में फूल ।
वासंती
पाठ पढ़े मौसम
परदेसी राह गया भूल ।
भ्रमरों के
घेरे में धूप
गाँठ बँधी हल्दी से दिन,
खिड़की में
झाँकते पलाश
फूलों की देह चुभे पिन,
माँझी के
साथ खुली नाव
धाराएँ,मौसम प्रतिकूल ।
सपनों में
खोल रहा कौन
चिट्ठी में टँके हुए पाटल,
प्रेममग्न
सुआ हरे पाँखी
छोड़ गए शाखों पे फल,
पियराये
सरसों के खेत
मेड़ों पे
टूटते उसूल ।
(सभी चित्र साभार गूगल)
बेहद सुंदर गीत सर।
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteअप्रितम सुन्दर
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०१-०२-२०२०) को "शब्द-सृजन"-६ (चर्चा अंक - ३५९८) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
आपका हृदय से आभार अनीता जी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार भाई साहब
Deleteअतिसुन्दर मनभावन गीत।
ReplyDeleteनई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र
हार्दिक आभार भाई रोहितास जी
Deleteबहुत ही सुंदर मनभावन गीत ,सादर नमन आपको
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार कामिनी जी
Deleteबहुत खूबसूरत सृजन ।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर। अत्यंत सादगी से मिलन के भावों को खूबसूरत प्राकृतिक बिंबों में बाँधती अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteनयनों के
ReplyDeleteखारे जल से
भींग रहे अँजुरी में फूल ।
वासंती
पाठ पढ़े मौसम
परदेसी राह गया भूल ।
बहुत ही सरस सरल और मनभावन अभिव्यक्ति अनुराग भरे मन की तुषार जी | भावनाओं में भीगा आपका लेखन कमाल का है | सादर