चित्र-साभार गूगल |
एक गीत-बँधी हुई पोथी सा मैं
बँधी हुई
पोथी सा मैं,
तुमने खोल दिया ।
नारंगी
होठों से
वेद मन्त्र बोल दिया ।
मौसम
प्रतिकूल और
नाव,नदी, धारा है,
मद्धम
अँगीठी की
आँच में ओसारा है,
बन्दीगृह,
रातों को
किसने पेरोल दिया ।
मौसम का
हर गुनाह
फूलों ने माफ़ किया,
धूल जमी
वंशी को
फिर किसने साफ किया,
गहरे
सन्नाटे में
पंचम सुर घोल दिया
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र-साभार गूगल |
बहुत सुन्दर
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