परमपूज्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महामंडलेश्वर स्वामी रामानन्द पीठ |
एक आस्था का गीत-
कुम्भ गीत-यह प्रयाग है
यह प्रयाग है
यहाँ धर्म की ध्वजा निकलती है।
यमुना आकर यहीं
बहन गंगा से मिलती है ।
संगम की यह रेत
साधुओं ,सिद्ध,फ़कीरों की,
यह प्रयोग की भूमि
नहीं यह महज लकीरों की,
इसके पीछे राजा चलता
रानी चलती है ।
महाकुम्भ का योग यहाँ
वर्षों पर बनता है,
गंगा केवल नदी नहीं
यह सृष्टि नियन्ता है,
यमुना जल में
सरस्वती वाणी में मिलती है ।
रचे-बसे हनुमान
यहाँ जन-जन के प्राणों में,
नागवासुकी का भी
वर्णन मिले पुराणों में,
यहाँ शंख को स्वर
संतों को ऊर्जा मिलती है ।
यहाँ कुमारिल भट्ट
हर्ष का वर्णन मिलता है,
अक्षय वट में
धर्म-मोक्ष का दीपक जलता है,
घोर पाप की यहीं
पुण्य में शक्ल बदलती है।
यहाँ अलोपी,झूँसी ,भैरव,
ललित माता हैं,
माँ कल्याणी भी
भक्तों की भाग्य-विधाता हैं,
मनकामेश्वर मन की
सुप्त कमलिनी खिलती है।
स्वतन्त्रता, साहित्य
यहीं से अलख जगाते हैं,
लौकिक प्राणी यहाँ
अलौकिक दर्शन पाते हैं
कल्पवास में यहाँ
ब्रह्म की छाया मिलती है ।
(इस गीत को अकाशवाणी प्रयाग राज द्वारा संगीत बद्ध किया गया है,यह उत्तर प्रदेश के प्रयाग अंक,हिंदुस्तानी ेेकेडमी के कुम्भ अंक और मेरे दूसरे गीत संग्रह में प्रकाशित है। इसे मैंने 2001के प्रयाग महाकुम्भ में शब्द दिया था।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-01-2020) को "देश मेरा जान मेरी" (चर्चा अंक - 3588) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'