Sunday, 9 February 2020

दो पुराने गीत -कोई गीत लिखा मौसम ने

चित्र -साभार गूगल 


दो गीत -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 

एक -मन ही मन ख़ामोश कबूतर 

मन ही मन ख़ामोश 
कबूतर कुछ बतियाता है |
बन्द लिफ़ाफे लेकर 
अब डाकिया न आता है |

क्या इस युग में सब 
इतने निष्ठुर हो जाएंगे , ,
अन्तरंग बातें भी 
यंत्रों से बतियाएंगे 
कोई बनकर अतिथि 
नहीं अब आता जाता है |

साँझ ढले माँ के चौके 
अब धुंआ नहीं होता ,
गागर में सागर क्या 
पनघट कुआँ नहीं होता 
कोई बच्चा अब न 
तितलियों को दौड़ाता है |

चाँद -सितारों की छाया में 
सोना कहाँ गया 
फूलों की घाटी में मन का 
खोना कहाँ गया 
अब न सगुन के समय 
कोई भौंरा मडराता है |

दो -
कोई गीत लिखा मौसम ने 

कोई गीत लिखा मौसम ने 
आज तुम्हारे नाम |

हरे -भरे खेतों में 
सरसों के लहराते फूल 
बहके -बहके पाँव हवा के 
कदम -कदम पे भूल 
कई दिनों के बाद चीरकर 
कोहरा निकला घाम |

अरसे बाद गाँव से आयी 
चिट्ठी खोल रहा 
बनकर होंठ गुलाबी 
हर इक अक्षर बोल रहा 
बहुत दिनों के बाद आज 
फिर हम होंगे बदनाम |

सुधियों के जकड़े -अनजकड़े 
बंधन टूट रहे 
हलद पुते हाथों से 
पीले कंगन छूट रहे 
तेरी आहट से उदासियाँ 
हुईं आज नीलाम |

चित्र -साभार गूगल 



5 comments:

  1. दोनों रचनाएं अंतर्मन को छूने वाली है है, यथार्त और सुन्दर सृजन हेतु बधाई और साधुवाद आदरणीय

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    Replies
    1. आपका हृदय से आभार राणा जी |सादर अभिवादन

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (10-02-2020) को 'खंडहर में उग आयी है काई' (चर्चा अंक 3607) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  3. वाह !बहुत ही सुन्दर सृजन
    सादर

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  4. दोनों गीत मॉल को छूकर अंतस को झंकृत कर गये तुषार जी | बीते समय की यादों की असहनीय कसक लिए पहला गीत आँखें नाम कर गया तो दुसरे गीत में --
    तेरी आहट से उदासियाँ
    हुईं आज नीलाम--- पंक्तियाँ कुछ कहने का रास्ता ही बंद कर रही हैं | आज सही अर्थों में आपके लेखन से रूबरू हुई , यूँ ब्लॉग पर आई तो कई बार हूँ | हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई सुंदर लेखन के लिए |

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