Saturday, 18 January 2020

एक गीत-बँधी हुई पोथी सा मैं

चित्र-साभार गूगल

एक गीत-बँधी हुई पोथी सा मैं 

बँधी हुई
पोथी सा मैं,
तुमने खोल दिया ।
नारंगी
होठों से
वेद मन्त्र बोल दिया ।

मौसम
प्रतिकूल और
नाव,नदी, धारा है,
मद्धम
अँगीठी की
आँच में ओसारा है,
बन्दीगृह,
रातों को
किसने पेरोल दिया ।

मौसम का
हर गुनाह
फूलों ने माफ़ किया,
धूल जमी
वंशी को
फिर किसने साफ किया,
गहरे
सन्नाटे में
पंचम सुर घोल दिया 

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र-साभार गूगल

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