![]() |
चित्र-साभार गूगल |
एक प्रेमगीत- सात रंग का छाता बनकर
सात रंग का
छाता बनकर
कड़ी धूप में तुम आती हो ।
मौसम के
अलिखित गीतों को
पंचम सुर-लय में गाती हो ।
जब सारा
संसार हमारा
हाथ छोड़कर चल देता है,
तपते हुए
माथ पर तेरा
हाथ बहुत सम्बल देता है,
आँगन में
हो रात-चाँदनी ,
चौरे पर दिया -बाती हो ।
कभी रूठना
और मनाना
इसमें भी श्रृंगार भरा है,
बिजली
मेघों की गर्जन से
हरियाली से भरी धरा है,
बार-बार
पढ़ता घर सारा ,
तुम तो एक सगुन पाती हो ।
भूखी-प्यासी
कजरी गैया
पल्लू खींचे, तुम्हें पुकारे,
माथे पर
काजल का टीका
जादू,टोना,नज़र उतारे,
सबकी प्यास
बुझाने में तुम
स्वयं नदी सी हो जाती हो ।
![]() |
चित्र-साभार गूगल |