Wednesday, 23 May 2012

एक नवगीत -डाल के फूलों हमें फिर बाँटना महके हुए दिन

चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत -डाल के फूलों हमें फिर बाँटना महके हुए दिन
कोयले की  
आँच जैसे 
हो गए दहके हुए दिन |
डाल के 
फूलों हमें 
फिर बाँटना महके हुए दिन |

इन हवाओं 
के थपेड़े 
हो गए आघात वाले ,
पीतवर्णी 
हो गए पत्ते 
हरी सी गाछ वाले ,
ये चुप्पियाँ 
तोड़ो परिन्दों 
बाँटना चहके हुए दिन |

ओ प्रिये !
तुम वायलिन पर 
फिर मिलन के गीत गाना ,
पथरा गयी 
सम्वेदना के 
पांव में घुँघरू सजाना ,
फिर साँझ 
होते लौट आयें 
भोर के बहके हुए दिन |

पारदर्शी 
आसमानों में 
धुँए छाने लगे हैं ,
बस्तियों में 
तेन्दुए वन 
छोड़कर आने लगे हैं ,
खून के 
छींटे न जिसमें ,
चाहिए टहके हुए दिन |
चित्र -गूगल से साभार 

7 comments:

  1. आँच जैसे हो गए दहके हुए दिन |
    डाल के फूलों हमें फिर बाँटना महके हुए दिन |

    बहुत सुंदर पंक्तिया,,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

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  2. ये चुप्पियाँ
    तोड़ो परिन्दों
    बाँटना चहके हुए दिन |

    bahut sundar bhaav

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  3. वाह, अत्यन्त क्रियाशील दिन।

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  4. इन हवाओं
    के थपेड़े
    हो गए आघात वाले ,
    पीतवर्णी
    हो गए पत्ते
    हरी सी गाछ वाले ,
    ये चुप्पियाँ
    तोड़ो परिन्दों
    बाँटना चहके हुए दिन ।

    आशा की ओर निहारता सुंदर गीत।

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  5. फिर मिलन के गीत गाना ,
    पथरा गयी
    सम्वेदना के
    पांव में घुँघरू सजाना ,
    फिर साँझ
    होते लौट आयें
    भोर के बहके हुए दिन |
    एक ऐसी भोर की प्रतीक्षा क्यों न हो संवेदनशील मन को

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  6. बहुत अच्छा लगा इस नवगीत को पढ़कर।

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  7. साँझ को फिर लौट आये भोर के बहके हुए दिन .........कोमल व गहरी भावानुभूतियो का गीत पढकर अच्छा लगा /

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