चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -डाल के फूलों हमें फिर बाँटना महके हुए दिन
कोयले की आँच जैसे
हो गए दहके हुए दिन |
डाल के
फूलों हमें
फिर बाँटना महके हुए दिन |
इन हवाओं
के थपेड़े
हो गए आघात वाले ,
पीतवर्णी
हो गए पत्ते
हरी सी गाछ वाले ,
ये चुप्पियाँ
तोड़ो परिन्दों
बाँटना चहके हुए दिन |
ओ प्रिये !
तुम वायलिन पर
फिर मिलन के गीत गाना ,
पथरा गयी
सम्वेदना के
पांव में घुँघरू सजाना ,
फिर साँझ
होते लौट आयें
भोर के बहके हुए दिन |
पारदर्शी
आसमानों में
धुँए छाने लगे हैं ,
बस्तियों में
तेन्दुए वन
छोड़कर आने लगे हैं ,
खून के
छींटे न जिसमें ,
आँच जैसे हो गए दहके हुए दिन |
ReplyDeleteडाल के फूलों हमें फिर बाँटना महके हुए दिन |
बहुत सुंदर पंक्तिया,,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
ये चुप्पियाँ
ReplyDeleteतोड़ो परिन्दों
बाँटना चहके हुए दिन |
bahut sundar bhaav
वाह, अत्यन्त क्रियाशील दिन।
ReplyDeleteइन हवाओं
ReplyDeleteके थपेड़े
हो गए आघात वाले ,
पीतवर्णी
हो गए पत्ते
हरी सी गाछ वाले ,
ये चुप्पियाँ
तोड़ो परिन्दों
बाँटना चहके हुए दिन ।
आशा की ओर निहारता सुंदर गीत।
फिर मिलन के गीत गाना ,
ReplyDeleteपथरा गयी
सम्वेदना के
पांव में घुँघरू सजाना ,
फिर साँझ
होते लौट आयें
भोर के बहके हुए दिन |
एक ऐसी भोर की प्रतीक्षा क्यों न हो संवेदनशील मन को
बहुत अच्छा लगा इस नवगीत को पढ़कर।
ReplyDeleteसाँझ को फिर लौट आये भोर के बहके हुए दिन .........कोमल व गहरी भावानुभूतियो का गीत पढकर अच्छा लगा /
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