Monday, 2 July 2012

मानसून कब लौटेगा बंगाल से


चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 

एक गीत -मानसून कब लौटेगा बंगाल से 
ये सूखे बादल 
लगते बेहाल से |
मानसून कब 
लौटेगा बंगाल से ?

कजली रूठी ,झूले गायब 
सूने गाँव ,मोहल्ले ,
सावन -भादों इस मौसम में 
कितने हुए निठल्ले ,
सोने -चांदी के दिन 
हम कंगाल से |

आंखें पीली 
चेहरा झुलसा धान का ,
स्वाद न अच्छा लगता 
मघई पान का ,
खुशबू आती नहीं 
कँवल की ताल से |

नहीं पास से गुजरी कोई 
मेहँदी रची हथेली ,
दरपन मन की बात न बूझे 
मौसम हुआ पहेली ,
सिक्का कोई नहीं 
गिरा रूमाल से |

फूलों के होठों से सटकर 
बैठी नहीं तितलियाँ ,
बिंदिया लगती है माथे की 
धानी -हरी बिजलियाँ ,
भींगी लटें नहीं
टकरातीं गाल से |


भींगी देह हवा से सटकर 
जाने क्या बतियाती ,
चैन नहीं खूंटे से बंधकर 
कजरी गाय रम्भाती ,
अभी नया लगता है 
बछड़ा चाल से |
चित्र -गूगल से साभार 
[मित्रों यह गीत ब्लॉग की पुरानी पोस्ट में है लेकिन सामयिक होने और कुछ न लिख पाने की व्यस्तता के कारण इसे दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ ]

20 comments:

  1. बहुत सुंदर ..... मानसून को बुलाती पंक्तियाँ मनभावन हैं ॰

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  2. जयकृष्ण भाई इस बेबस पीड़ा को कितना सटीक शब्द और अभिव्यक्ति दी है आपने !

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  3. Bahut dino baad blog jagat me aayee hun....aapko padhke bahut achha laga!

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  4. अब तो सभी को इंतजार है..... बहुत सुंदर

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  5. झलसती गर्मी में मगही पान तो गायब हो चुका है।:)

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  6. लम्बे इंतजार के बाद बरखा के गीत की रिमझिम फुहार मन को भिगो गयी '.

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  7. लम्बे इंतजार के बाद बरखा के गीत की रिमझिम फुहार मन को भिगो गयी '.

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  8. तपिस की वेदना ........व्यथित मन प्रतीक्षा में है ...आज रे ...बंगाल से .... सुन्दर जी राय साहब ..../

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  9. मानसून की राह तकती बेबस अभिव्यक्ति ...

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  10. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05 -07-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में .... अब राज़ छिपा कब तक रखे .

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  11. बड़ी प्यारी रचना है ...
    आभार आपका !

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  12. बहुत सुन्दर............
    भीगी सी रचना...

    सादर
    अनु

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  13. is maansoon ki to sabhi ko prtiksha hai.....bahut sundar

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  14. कजली रूठी ,झूले गायब
    सूने गाँव ,मोहल्ले ,
    सावन -भादों इस मौसम में
    कितने हुए निठल्ले ,
    सोने -चांदी के दिन
    हम कंगाल से |
    सावन में जहाँ झड़ी का इंतज़ार रहता है वहीँ आज .उमस से हाल बेहाल हैं....
    बहुत बढ़िया रचना

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  15. नहीं पास से गुजरी कोई
    मेहँदी रची हथेली ,
    दरपन मन की बात न बूझे
    मौसम हुआ पहेली ,

    ...वाह! लाज़वाब अहसास...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  16. बारिश की आस में सुंदर गीत..

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  17. बहुत सुंदर नवगीत है…
    मानसून कब लौटेगा बंगाल से शीर्षक से ही पहले पढ़ा हुआ कुछ कुछ याद आ गया …
    वाऽऽह ! क्या बात है आपकी !

    प्रिय बंधुवर जयकृष्ण राय तुषार जी
    आनंद आ गया जी गीत गुनगुना कर पढ़ते हुए !



    हार्दिक शुभकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  18. बहुत इंतज़ार करा रहा है मानसून...बहुत प्यारी रचना..

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