Tuesday, 22 May 2012

एक नवगीत -खुली हुई वेणी को धूप में सुखाना मत

चित्र -गूगल से साभार 
खुली हुई वेणी को धूप में सुखाना मत 
खुली हुई वेणी को 
धूप में सुखाना मत 
बूंद -बूंद धरती पे गिरने दो |
सूख रही 
झीलों में लहर उठे 
प्यासे इन हँसों को तिरने दो |

तुम्हें देख 
सागर से उमड़ -घुमड़ 
बादल भी धार तोड़ बरसेंगे ,
फूटेंगे 
धानों में कल्ले 
हम बच्चों को दूध -भात परसेंगे ,
हरियाली के 
सपने आयेंगे 
दुर्दिन में इनको मत मरने दो |

धूल भरी आंधी ,
तूफानों को 
हरे -हरे पेड़ों तुम सह लेना ,
मौसम तो 
हरगिज ये बदलेगा 
फिर मन में बात दबी कह लेना ,
दहक रही 
घाटी फिर महकेगी 
फूलों में गन्ध नई भरने दो |

खुरदरी 
हथेलियों में देखना 
मेंहदी के रंग उभर आयेंगे ,
ठूँठों पर 
हाँफते परिन्दे ये 
देख तुम्हें अनायास गायेंगे ,
हम भी 
पद्मावत रच डालेंगे 
अस्त -व्यस्त शाम को सँवरने दो |
चित्र -गूगल से साभार 

14 comments:

  1. वाह बहुत सुंदर नव गीत ॥नयी आशा और प्रेरणा लिए हुये

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  2. वाह!!

    बहुत सुंदर गीत................
    मनभावन प्रस्तुति...

    सादर.

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  3. बहुत ही सुन्दर कोमल अहसास से परिपूर्ण बेहतरीन रचना...
    अति सुन्दर भाव:-)

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  4. वाह ...बहुत ही बढिया

    कल 23/05/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ... तू हो गई है कितनी पराई ...

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  5. मौसम तो
    हरगिज ये बदलेगा
    फिर मन में बात दबी कह लेना ,
    दहक रही
    घाटी फिर महकेगी
    फूलों में गन्ध नई भरने दो |

    आहा हा..क्या कहूँ भाव विभोर कर दिया आपके इस गीत ने...अप्रतिम...बधाई

    नीरज

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  6. बहुत खूबसूरत नवगीत्।

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  7. हम भी
    पद्मावत रच डालेंगे
    अस्त -व्यस्त शाम को सँवरने दो ...

    सुन्दर नवगीत .. आशा जगाता भाव लिए ... मज़ा आ गया ....

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  8. नैशर्गिक,रोचक व निराली ,कविता .... शुभ कामनाएं राय.साहब

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  9. श्रृंगार परिपूर्ण !

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  10. बहुत सुन्दर ...

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  11. बड़ा ही कोमल और सुन्दर गीत..

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  12. पूरा पद्मावत लिखने का माहौल बना डाला...तुषार जी...अलकें सुखाने पर तो बहुत कवितायेँ लिखीं गयीं हैं...पर ना सुखाने पर संभवतः ये पहली हो...

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