चित्र -गूगल से साभार |
खुली हुई वेणी को धूप में सुखाना मत
खुली हुई वेणी को
धूप में सुखाना मत
बूंद -बूंद धरती पे गिरने दो |
सूख रही
झीलों में लहर उठे
प्यासे इन हँसों को तिरने दो |
तुम्हें देख
सागर से उमड़ -घुमड़
बादल भी धार तोड़ बरसेंगे ,
फूटेंगे
धानों में कल्ले
हम बच्चों को दूध -भात परसेंगे ,
हरियाली के
सपने आयेंगे
दुर्दिन में इनको मत मरने दो |
धूल भरी आंधी ,
तूफानों को
हरे -हरे पेड़ों तुम सह लेना ,
मौसम तो
हरगिज ये बदलेगा
फिर मन में बात दबी कह लेना ,
दहक रही
घाटी फिर महकेगी
फूलों में गन्ध नई भरने दो |
खुरदरी
हथेलियों में देखना
मेंहदी के रंग उभर आयेंगे ,
ठूँठों पर
हाँफते परिन्दे ये
देख तुम्हें अनायास गायेंगे ,
हम भी
पद्मावत रच डालेंगे
अस्त -व्यस्त शाम को सँवरने दो |
चित्र -गूगल से साभार |
वाह बहुत सुंदर नव गीत ॥नयी आशा और प्रेरणा लिए हुये
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत................
मनभावन प्रस्तुति...
सादर.
बहुत ही सुन्दर कोमल अहसास से परिपूर्ण बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteअति सुन्दर भाव:-)
वाह ,,,, बहुत सुंदर नई आशा की प्रेरणा देता गीत
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
वाह ...बहुत ही बढिया
ReplyDeleteकल 23/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... तू हो गई है कितनी पराई ...
मौसम तो
ReplyDeleteहरगिज ये बदलेगा
फिर मन में बात दबी कह लेना ,
दहक रही
घाटी फिर महकेगी
फूलों में गन्ध नई भरने दो |
आहा हा..क्या कहूँ भाव विभोर कर दिया आपके इस गीत ने...अप्रतिम...बधाई
नीरज
बहुत खूबसूरत नवगीत्।
ReplyDeleteहम भी
ReplyDeleteपद्मावत रच डालेंगे
अस्त -व्यस्त शाम को सँवरने दो ...
सुन्दर नवगीत .. आशा जगाता भाव लिए ... मज़ा आ गया ....
नैशर्गिक,रोचक व निराली ,कविता .... शुभ कामनाएं राय.साहब
ReplyDeleteश्रृंगार परिपूर्ण !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteबेहतरीन!
ReplyDeleteसादर
बड़ा ही कोमल और सुन्दर गीत..
ReplyDeleteपूरा पद्मावत लिखने का माहौल बना डाला...तुषार जी...अलकें सुखाने पर तो बहुत कवितायेँ लिखीं गयीं हैं...पर ना सुखाने पर संभवतः ये पहली हो...
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