Tuesday, 28 February 2012

एक कविता -लोकभाषा में -देखा पंचो आँख खोलि के गाँव -शहर फगुनाइल बा

चित्र -गूगल से साभार 
एक कविता लोकभाषा में -
देखा पंचो आँख खोलि के गाँव -शहर फगुनाइल बा 
अमवैं के जिन दोष मढ़ा 
मनवां सबकर बौउराइल बा |
देखा पंचो आँख खोलि के 
गाँव -शहर फगुनाइल बा |

हँसी -ठिठोली ,बिरहा -चैता 
ढोलक ,झांज ,मजीरा हउवै,
चिलम ,तमाखू ,भाँग ओसारे 
बोलत केहू जोगीरा हउवै .
जेके कहै मोहल्ला सांवर 
ओहू क रंग सोन्हाइल बा |

लाज -शरम सब भूलि गईल बा 
होली कै मदहोशी देखा ,
देवर भउजी के पटकत बा 
भईया कै ख़ामोशी देखा ,
बुढऊ दादा कै गुस्सा भी 
फागुन में नरमाइल बा |

मिश्राइन -मिश्रा कै जोड़ी 
इतर लगा के महकत हउवै,
आसमान से बदरी गायब 
मद्धिम सूरज टहकत हउवै,
मौसम के अदलाबदली से 
नदियौ कुछ गरमाइल बा |

कई वियाह मुहल्ला में हौ 
रोज नउनिया आवत हउवै,
उपरहिता के काटि चिकोटी 
हँसि -हँसि नाच नचावत हउवै,
पत्रा भूलल, पोथी भूलल 
मंतर कई भुलाइल बा |

टाट -भात हौ मेल -जोल हौ 
पाहुन -परजा न्यौता हउवै ,
एक हाथ में पान सोपारी 
दूसरे हाथ सरौता हउवै,
लोकरंग उत्सव कै सपना 
सबके आंख समाइल बा |
चित्र -गूगल से साभार 
[यह मेरी पुरानी कविता है जिसमें कुछ सुधार किया गया है एक भोजपुरी कवि गोष्ठी के लिए लिखी गयी थी |मैं लोकभाषा में लिख तो सकता हूँ लेकिन लिखता नहीं |यहाँ इस कविता को आप तक पहुँचाने का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है और विलुप्त होती परम्पराओं की जानकारी देना मात्र है |हमारे शहरी मित्रों को इसे समझने में कठिनाई होगी ,फिर भी आपका स्नेह  अपेक्षित है ]

7 comments:

  1. बहुत कठिनाई हुई...
    मगर २-३ बार पढ़ने से समझ आ गयी..
    अक्षरशः नहीं मगर भाव तो समझ गए..
    सुन्दर..

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  2. यद्यपि फागुन तो हर साल आता है ,फागुनी बयार भी ,परन्तु फागुनी अहसास सिमटने लगा है , ऐसे में आप की रचना लोकायन से संवाद करती समृद्ध है , बहुत -२ बधाईयाँ जी /

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  3. वाह पढ़ने में तो बहुत ही आनंद आया ...

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  4. हम तो होली में नरमतम हो लेते हैं..

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  5. बहुतै नीक बा...हमहू इलाहाबादी हई...पर भोजपुरिया भुला गइल बा...होलिया आय रही है...अब की दायीं जम के फगुनिया लिहिल जाय...तोहार कविता पढि कै...मजा आय गवा...

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  6. मिश्राइन -मिश्रा कै जोड़ी इतर लगा के महकत हउवै,आसमान से बदरी गायब मद्धिम सूरज टहकत हउवै

    बहुत अच्छा

    मैं लोकभाषा में लिख तो सकता हूँ लेकिन लिखता नहीं

    लिखा कीजिये
    अच्छा लिखते हैं

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  7. बा भैया ई त कैलाश गौतम क बराबरी है हो !

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