चित्र -गूगल से साभार |
फूल देकर गया कोई चाय देने के बहाने
आम के
नन्हें टिकोरे
हो गए कितने सयाने |
झील ,पर्वत ,
घाटियाँ सब
हो गए इनके ठिकाने |
कसमसाकर
खुले जूड़े ,हरे -
वन ,सिवान महके ,
गांछ पर
सोये पलाशों के
हृदय प्रेमाग्नि दहके ,
फूल देकर
गया कोई
चाय देने के बहाने |
एक चिड़िया
सुबह दरपन को
निहारे ,चोंच मारे ,
मौसमों के
रंग बदले
और चढ़ने लगे पारे ,
पेड़ के
कोटर बहेलिए
आ गए तोते चुराने |
अजनबी ने
पता पूछा
हम उसी के हो गए ,
गाँव की
जानी हुई
पगडंडियों में खो गए ,
दिन अबोले
कनखियों से
गाँव की
ReplyDeleteजानी हुई
पगडंडियों में खो गए ,
दिन अबोले
कनखियों से
लगे फिर हमको बुलाने |
बहुत सुन्दर रचना...
सादर.
सरल सहज शब्दों में अपनी बात कहने का आपका कोई सानी नहीं...
ReplyDeleteLambi bimaari ke baad ab avsar mila aap logon ko padhne ka ...bahut achchha likha aapne bahut2 badhai...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना, कोमल भावों को बड़े करीने से सजाया है..
ReplyDeleteएक चिड़िया
ReplyDeleteसुबह दरपन को
निहारे ,चोंच मारे ,
मौसमों के
रंग बदले
और चढ़ने लगे पारे ,
पेड़ के
कोटर बहेलिए
आ गए तोते चुराने |... सोलहवें साल की अदा
प्रेमानुभूति के स्वर!
ReplyDeleteफूल देकर
ReplyDeleteगया कोई
चाय देने के बहाने |
Bahut sundar!
apki rachana .....aur tippani karu....na Tushar bhai .....rachanayen ....adbhud hoti hain ...bs kya likhun aage to ap samjh hi sakate hain
ReplyDeleteमन के सरल भावों को लिए सुंदर शब्द .....
ReplyDeleteगाँव की
ReplyDeleteजानी हुई
पगडंडियों में खो गए ,
दिन अबोले
कनखियों से
लगे फिर हमको बुलाने |
...बहुत भावमयी रचना..शब्दों और भावों का अद्भुत संयोजन...
कसमसाकर
ReplyDeleteखुले जूड़े ,हरे -
वन ,सिवान महके ,
गांछ पर
सोये पलाशों के
हृदय प्रेमाग्नि दहके ,
फूल देकर
गया कोई
चाय देने के बहाने |
अति उत्तम ।।। पढकर मन ह़र्षित हो उठा....बधाई )))))))))))
ReplyDeleteपेड़ के
ReplyDeleteकोटर बहेलिए
आ गए तोते चुराने |
सजीव दृश्य तैर गया आँखों के सामने
इस सुन्दर गीत के लिए बधाई