Sunday, 26 February 2012

एक गीत -फूल देकर गया कोई

चित्र -गूगल से साभार 
फूल देकर गया कोई चाय देने के बहाने 
आम के 
नन्हें टिकोरे 
हो गए कितने सयाने |
झील ,पर्वत ,
घाटियाँ सब 
हो गए इनके ठिकाने |

कसमसाकर 
खुले जूड़े ,हरे -
वन ,सिवान महके ,
गांछ पर 
सोये पलाशों के 
हृदय प्रेमाग्नि दहके ,
फूल देकर 
गया कोई 
चाय देने के बहाने |

एक चिड़िया 
सुबह दरपन को 
निहारे ,चोंच मारे ,
मौसमों के 
रंग बदले 
और चढ़ने लगे पारे ,
पेड़ के 
कोटर बहेलिए 
आ गए तोते चुराने |

अजनबी ने 
पता पूछा 
हम उसी के हो गए ,
गाँव की 
जानी हुई 
पगडंडियों में खो गए ,
दिन अबोले 
कनखियों से 
लगे  फिर हमको बुलाने |
चित्र -गूगल से साभार 

13 comments:

  1. गाँव की
    जानी हुई
    पगडंडियों में खो गए ,
    दिन अबोले
    कनखियों से
    लगे फिर हमको बुलाने |

    बहुत सुन्दर रचना...
    सादर.

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  2. सरल सहज शब्दों में अपनी बात कहने का आपका कोई सानी नहीं...

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  3. Lambi bimaari ke baad ab avsar mila aap logon ko padhne ka ...bahut achchha likha aapne bahut2 badhai...

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  4. बेहतरीन रचना, कोमल भावों को बड़े करीने से सजाया है..

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  5. एक चिड़िया
    सुबह दरपन को
    निहारे ,चोंच मारे ,
    मौसमों के
    रंग बदले
    और चढ़ने लगे पारे ,
    पेड़ के
    कोटर बहेलिए
    आ गए तोते चुराने |... सोलहवें साल की अदा

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  6. प्रेमानुभूति के स्वर!

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  7. फूल देकर
    गया कोई
    चाय देने के बहाने |
    Bahut sundar!

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  8. apki rachana .....aur tippani karu....na Tushar bhai .....rachanayen ....adbhud hoti hain ...bs kya likhun aage to ap samjh hi sakate hain

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  9. मन के सरल भावों को लिए सुंदर शब्द .....

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  10. गाँव की
    जानी हुई
    पगडंडियों में खो गए ,
    दिन अबोले
    कनखियों से
    लगे फिर हमको बुलाने |

    ...बहुत भावमयी रचना..शब्दों और भावों का अद्भुत संयोजन...

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  11. कसमसाकर
    खुले जूड़े ,हरे -
    वन ,सिवान महके ,
    गांछ पर
    सोये पलाशों के
    हृदय प्रेमाग्नि दहके ,
    फूल देकर
    गया कोई
    चाय देने के बहाने |

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  12. अति उत्तम  ।।। पढकर मन ह़र्षित हो उठा....बधाई  )))))))))))

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  13. पेड़ के
    कोटर बहेलिए
    आ गए तोते चुराने |

    सजीव दृश्य तैर गया आँखों के सामने

    इस सुन्दर गीत के लिए बधाई

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