चित्र -गूगल से साभार |
तुझे जलती हुई लौ ,मुझको परवाना लिखा जाए
ये दिल कहता है इक अच्छा सा अफ़साना लिखा जाए .
तेरी तस्वीर मेरे मुल्क हर जानिब से है अच्छी
तुझे कश्मीर ,शिमला या कि हरियाना लिखा जाए .
अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं
गज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए .
जो शायर मुफ़लिसों की तंग गलियों से नहीं गुजरा
वो कहता है गज़ल में जाम -ओ -पैमाना लिखा जाए .
ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ
किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए .
मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता
शहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए .
बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में
किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .
बदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना
किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए .
शहर का हाल अब अच्छा नहीं लगता हमें यारों
अब अपनी डायरी में कुछ तो रोजाना लिखा जाए .
चित्र -गूगल से साभार |
ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ
ReplyDeleteकिताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए .
मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता
शहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए .
Kya baat hai!
अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं
ReplyDeleteगज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए .
ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ
किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए .
बदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना
किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए .
भाई कमाल के अशआर पिरोये हैं आपने इस बेहद खूबसूरत ग़ज़ल में...सुभान अल्लाह...मेरी ढेरों दाद कबूल फरमाएं...
नीरज
वाह वाह!!!!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गज़ल...
बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में
किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .
ये तो लाजवाब!!
सादर.
मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता
ReplyDeleteशहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए
क्या बात है...बहुत खूब सर!
सादर
जैसे भी हो, प्रयास कर ऐसा ही फसाना लिखा जाये..
ReplyDeleteबदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना
ReplyDeleteकिसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए .
zindabad sahab zindabad
तुझे जलती हुई लौ ,मुझको परवाना लिखा जाए
ReplyDeleteये दिल कहता है इक अच्छा सा अफ़साना लिखा जाए .
....bahut hi best gajal ...:)
your's gazal is very nice.
ReplyDeleteyour's gazal is very nice.
ReplyDeleteबहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में
ReplyDeleteकिसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .
सच के बारे में बिल्कुल सच लिखा है आपने।
यथार्थपरक अभिव्यक्ति।
अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं
ReplyDeleteगज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए..
बहुत ही लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... आज की हकीकत को बहुत ही तल्खी से बयान किया है ...
बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में
ReplyDeleteकिसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .
...बहुत खूब! बहुत ख़ूबसूरत गज़ल ...
किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए
ReplyDelete____________________
यही सबसे ज्यादा जरूरी है
आपकी गज़लें लाजवाब होतीं हैं...अनुभवों को शब्द देना दुरूह कार्य है...बहुत खूब...
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