Saturday, 11 February 2012

एक गीत -कवि कैलाश गौतम

कवि -कैलाश गौतम
समय -[08-01-1944 से 09-12-2006]
कल से डोरे डाल रहा है फागुन बीच सिवान में -कैलाश गौतम 
कल से 
डोरे डाल रहा है 
फागुन बीच सिवान में |
रहना मुश्किल हो जाएगा 
प्यारे बंद मकान में |

भीतर से 
खिड़कियाँ खुलेंगी 
बौर आम के महकेंगे ,
आँच पलाशों पर आएगी 
सुलगेंगे कुछ दहकेंगे ,
घर का महुआ रंग लाएगा 
चूना जैसे पान में |

फिर अधखुली पसलियों की 
गुदगुदी धूप में बोलेगी ,
पकी फसल सी लदी ठिठोली 
गली -गली फिर डोलेगी ,
कोहबर की जब बातें होंगी 
ऊँगली दोनों कान में |

रात गए 
पुरवा के झोंके 
सौ आरोप लगायेंगे ,
सारस जोड़े 
ताल किनारे 
लेकर नाम बुलाएंगे ,
मन -मन भर के 
पाँव पड़ेंगे 
घर -आँगन दालान में |
चित्र -गूगल से साभार 
[कैलाश गौतम जी का परिचय हमारे  ब्लॉग की पुरानी पोस्ट में दिया गया है ]

7 comments:

  1. ग्रामीण आत्मीय परिवेश की महक समेटे शब्दों की लड़ियाँ..

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  2. कैलाश जी को रूबरू सुनने का आनंद पाया है हमने, उनके कुछ फागुनी दोहे थे-
    लगे फूंकने आम के बौर गुलाबी शंख
    कैसे रहें किताब में हम मयूर के पंख. आदि.

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  3. भीतर से
    खिड़कियाँ खुलेंगी
    बौर आम के महकेंगे ,
    आँच पलाशों पर आएगी
    सुलगेंगे कुछ दहकेंगे ,
    घर का महुआ रंग लाएगा
    चूना जैसे पान में |

    बहुत सुन्दर ..
    आपका शुक्रिया ,सुन्दर रचना सांझा करने के लिए.

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  4. सुन्दर, बहुत ही बेहतरीन रचना है.....

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  5. इस रसभरे बासंती गीत के लिए बार-बार वाह...!

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  6. सूक्ष्म संकेतों के धनी कालजयी कवि हैं कैलाश गौतम -आभार यह रचना पढवाने के लिए !

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  7. हार्दिक आभार सुन्दर गीत पढवाने के लिए..

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