आँखों ने जो देखा वो अफ़साना भी नहीं है
वो यारों मोहब्बत का दीवाना भी नहीं है
अफ़सोस परिंदे यहाँ मर जायेंगे भूखे
इस बार किसी जाल में दाना भी नहीं है
इक दिन की मुलाकात से गफलत में शहर है
सम्बन्ध मेरा उससे पुराना भी नहीं है
वो ढूढता फिरता है हरेक शै में गज़ल को
अब मीर औ ग़ालिब का जमाना भी नहीं है
फूलों से भरे लाँन में दीवार उठा मत
मुझको तो तेरे सहन में आना भी नहीं है
हर मोड़ पे वो राह बदल लेता है अपनी
गर दोस्त नहीं है तो बेगाना भी नहीं है
इस सुबह की आँखों में खुमारी है क्यों इतनी
इक दिन की मुलाकात से गफलत में शहर है
ReplyDeleteसम्बन्ध मेरा उससे पुराना भी नहीं है
क्या बात है ! बड़े दिनों बाद ,ओजश्वी गजल मिली पढ़ने को ,साधुवाद जी राय साहब ..../
अफ़सोस परिंदे यहाँ मर जायेंगे भूखे
ReplyDeleteइस बार किसी जाल में दाना भी नहीं है
अभी तो आगे पढ़ना बाक़ी है।
क्या बात कही भाई आपने।
अद्भुत! अद्भुत!
ReplyDeleteहम तो इसे पढ़-पढ़ कर आनंद ले रहे हैं।
हर मोड़ पे वो राह बदल लेता है अपनी
ReplyDeleteगर दोस्त नहीं है तो बेगाना भी नहीं है
इस सुबह की आँखों में खुमारी है क्यों इतनी
इस शहर में तो कोई मैखाना भी नहीं है
Wah! Kya kamaal kaa likhte hain aap!
अफ़सोस परिंदे यहाँ मर जायेंगे भूखे
ReplyDeleteइस बार किसी जाल में दाना भी नहीं है waah
कुछ व्यस्तताओं के चलते इधर आप सभी के ब्लॉग पर आना नहीं हो सका ब्लॉग भी अपडेट नहीं कर सका मैं समझ रहा था आप सभी मुझसे नाराज होगें लेकिन आपका आशीष पाकर मैं धन्य हो गया |आभार
ReplyDeleteआदरणीय जयकृष्ण राय तुषार जी
ReplyDeleteसादर अभिवादन !
बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी है हर शे'र पर दाद स्वीकार कीजिएगा ।
अफ़सोस परिंदे यहा मर जायेंगे भूखे
इस बार किसी जाल में दाना भी नहीं है
बहुत अर्थ लिए है यह शे'र … क्या बात है !
वो ढूढता फिरता है हरेक शै में गज़ल को
अब मीर औ' ग़ालिब का जमाना भी नहीं है
लाजवाब !
फूलों से भरे लॉन में दीवार उठा मत
मुझको तो तेरे सहन में आना भी नहीं है
कुर्बान हो गया इस बेहतरीन शे'र पर तो …
आप जितने ख़ूबसूरत नवगीत और गीत लिखते हैं , उतनी ही प्रभावशाली और पुख़्ता ग़ज़ल भी लिखते हैं ।
संपूर्ण हृदय के साथ…
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अफ़सोस परिंदे यहाँ मर जायेंगे भूखे
ReplyDeleteइस बार किसी जाल में दाना भी नहीं है
बहुत सुंदर..... प्रभावित करती उम्दा ग़ज़ल..
परिंदे वाला शेर वाक़ई आकृष्ट करता है| खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई|
ReplyDeleteकुण्डलिया छन्द - सरोकारों के सौदे
Kya baat hai , umda nazm shukriya
ReplyDeleteफूलों से भरे लाँन में दीवार उठा मत
ReplyDeleteमुझको तो तेरे सहन में आना भी नहीं है
तुषार भाई...लाजवाब कर दिया है आपने...कमाल की ग़ज़ल...दाद कबूल अक्रें...
नीरज
इस सुबह की आँखों में खुमारी है क्यों इतनी
ReplyDeleteइस शहर में तो कोई मैखाना भी नहीं है ..
बहुत खूब ... लाजवाब्शेर ही इस कमाल की गज़ल का ... मज़ा आ गया ...
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है। मत्ले के मिसरा-ए-ऊला में थोड़ी सी बहर में दिक्कत आई मुझे। २२११ २२११ २२११ २२ से एक मात्रा ज्यादा आ रही है। शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार कीजिए।
ReplyDeleteअफ़सोस परिंदे यहाँ मर जायेंगे भूखे
ReplyDeleteइस बार किसी जाल में दाना भी नहीं है .
बहुत बढ़िया.वाह क्या बात है.
बेहतरीन.
अफ़सोस परिंदे यहाँ मर जायेंगे भूखे
ReplyDeleteइस बार किसी जाल में दाना भी नहीं है
इक दिन की मुलाकात से गफलत में शहर है
सम्बन्ध मेरा उससे पुराना भी नहीं है
बहुत खूबसूरत शेर....
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल तुषार भाई ....
ReplyDelete..हर शेर जानदार .....धारदार...........अर्थपूर्ण
फूलों से भरे लाँन में दीवार उठा मत
ReplyDeleteमुझको तो तेरे सहन में आना भी नहीं है
बहुत सुन्दर ग़ज़ल... आभार और बधाई
वाह..वाह...
ReplyDeletesahaj pratik avm bimbo ka utkrastha prayog madhu ji ke geeto ki anytam visheshta he ;apne apne blog me sthan dekar bhopal ka man badhaya he meri or se unhe badhai aur apko aabhar.
ReplyDeletemanoj jain madhur bhopal