चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
मौसम तो खुशगवार बहुत वादियों में है
मेरा सफर तमाम मगर सर्दियों में है
ये सोचकर परिंदे भी उड़ते चले गए
रहते थे जिस दरख्त पे वो आंधियों में है
डर आदमी को है या सियासत का खेल ये
क़ातिल शिकार से भी अधिक सुर्ख़ियों में है
हीरा हुआ वो ,भाग्य मेरा कोयला हुआ
मेरा भी जन्म लग्न उन्हीं राशियों में है
कुछ भी कहा न तुमने मगर मैं समझ गया
कुछ व्याकरण अजीब तेरी कनखियों में है
गुजरा हरेक शख्स इधर देखता हुआ
पूनम का कोई चाँद इन्ही खिड़कियों में है
नाजुक मिजाज़ कह के नहीं भेद -भाव कर
अब जंग का हुनर भी यहाँ लड़कियों में है
दो
खौफ़ का कितना हसीं मंजर था मेरे सामने
हर किसी के हाथ में पत्थर था मेरे सामने
अम्न की बातें परिंदे कैसे मेरी मानते
रक्त में डूबा हुआ इक पर था मेरे सामने
प्यार से जब खेलते बच्चे को चाहा चूमना
मैं वक्त का पाबंद था दफ्तर था मेरे सामने
अब तलक भूली नहीं बचपन की मुझको वो सजा
मैं खड़ा था धूप में और घर था मेरे सामने
पार भी करता मैं वो दरिया तो कैसे दोस्तों
फिर बगावत में खड़ा लश्कर था मेरे सामने
जन्म दिन पर तेरे कैसे भेंट करता फूल मैं
सहरा था मेरे सामने बंजर था मेरे सामने
जो भी इन्सा थे उन्हें ठोकर मिली गाली मिली
मित्र मधुर गजलों के लिए शुभकामनायें --
ReplyDeleteजो भी इन्सा थे उन्हें ठोकर मिली गाली मिली
देवता बनकर खड़ा पत्थर था मेरे सामने /
भवना व शब्द चयन दोनों प्रभावशाली ,शक्रिया जी /
तुषार जी, आपकी हर विधा का कायल हो गया हूँ...सरल-सहज शब्दों में अपनी बात कहना...बड़ी बात है...
ReplyDeleteये सोचकर परिंदे भी उड़ते चले गए
ReplyDeleteरहते थे जिस दरख्त पे वो आंधियों में है
दोनों ही ग़ज़लें सशक्त। सारे शे’र मन को छू गए।
दोनों ग़ज़लें लाजवाब हैं...एक-एक अशआर मन को छूने वाले हैं....
ReplyDeleteजन्म दिन पर तेरे कैसे भेंट करता फूल मैं
ReplyDeleteसहरा था मेरे सामने बंजर था मेरे सामने ||
काश ||
मैं भी ऐसे लिख पता ||
गजल लिखने वालों से
बड़ी ईर्ष्या है मुझे ||
फिर भी आया हूँ तो
बधाई तो कहनी ही पड़ेगी ||
भावों को गज़ल के माध्यम से उकेरना……।सुंदर प्रस्तुति। ………शुक्रिया।
ReplyDeleteआपकी दोनों ही गजलें लाजबाब है .....बहुत खूब लिखा है आपने धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,प्रभावशाली ..लाजवाब
ReplyDeletenihayat hi umda ghazle... bahut hisahaj shailee..
ReplyDeleteदोनों ही गजले बेहतरीन हैं ...
ReplyDeleteआप का बलाँग मूझे पढ कर अच्छा लगा , मैं भी एक बलाँग खोली हू
ReplyDeleteलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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hai
कुछ भी कहा न तुमने मगर मैं समझ गया
ReplyDeleteकुछ व्याकरण अजीब तेरी कनखियों में है
अम्न की बातें परिंदे कैसे मेरी मानते
रक्त में डूबा हुआ इक पर था मेरे सामने ...
बहुत ही बढ़िया और एक से बढ़कर एक शेर हैं ! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
बहुत बढ़िया....
ReplyDeleteसरल शब्दों में आप अपनी बात खूबसूरती से कह गए हैं ..
शुभकामनायें आपको !
नाजुक मिजाज़ कह के नहीं भेद -भाव कर
ReplyDeleteअब जंग का हुनर भी यहाँ लड़कियों में है
अम्न की बातें परिंदे कैसे मेरी मानते
रक्त में डूबा हुआ इक पर था मेरे सामने
प्यार से जब खेलते बच्चे को चाहा चूमना
मैं वक्त का पाबंद था दफ्तर था मेरे सामने
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ग़ज़लें बहुत अच्छी हैं
पहली ग़ज़ल....
ReplyDeleteकुछ भी कहा न तुमने मगर मैं समझ गया
कुछ व्याकरण अजीब तेरी कनखियों में है
गुजरा हरेक शख्स इधर देखता हुआ
पूनम का कोई चाँद इन्ही खिड़कियों में है
नाजुक मिजाज़ कह के नहीं भेद -भाव कर
अब जंग का हुनर भी यहाँ लड़कियों में है
आपके ये शेर नावक के तीर से कम नहीं हैं...बहुत सुन्दर...बहुत खूब...
दूसरी ग़ज़ल...
प्यार से जब खेलते बच्चे को चाहा चूमना
मैं वक्त का पाबंद था दफ्तर था मेरे सामने
अब तलक भूली नहीं बचपन की मुझको वो सजा मैं खड़ा था धूप में और घर था मेरे सामने
इन शेरों में भावना और दृश्यात्मकता का तादात्म्य ग़ज़ब का है...
दोनों ग़ज़लों के लिए आपको हार्दिक बधाई।
dono gazle ati uttam hai dusri gazal ke to kya kahne
ReplyDeleteजन्म दिन पर तेरे कैसे भेंट करता फूल मैं
सहरा था मेरे सामने बंजर था मेरे सामने |
bahut sunder
rachana
अब तलक भूली नहीं बचपन की मुझको वो सजा
ReplyDeleteमैं खड़ा था धूप में और घर था मेरे सामने
वह बहुत ही लाजवाब .. क्या शेर है तुषार जी ... कितनी ही बातों को याद करा गया ...
नमस्कार,
ReplyDeleteमैं अपने ब्लॉग, क्रिस्टल के ब्लॉग मिला.
मैं ब्राजील से हूँ.
ब्लॉग एक महान उपकरण है कि हमें कई स्थानों और कई देशों से लोगों से मिलना है.
सादर,
Suely Rezende
स्तुति करो भगवान के वारिस
मैं गूगल अनुवादक का इस्तेमाल इस टिप्पणी लिखें.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteI was very happy with your contact.
ReplyDeleteYou're from India?
It was in our church a few months ago a couple of Indian pastors.
We love to see more of India with them.
God be with you,
Suely Rezende
Maringá-Paraná-Brazil
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
ReplyDeletehttp://seawave-babli.blogspot.com/
अम्न की बातें परिंदे कैसे मेरी मानते
ReplyDeleteरक्त में डूबा हुआ इक पर था मेरे सामने
क्या बात है , वाह वाह वाह वाह
दोनों ग़ज़लें लाजवाब हैं..
डर आदमी को है या सियासत का खेल ये
ReplyDeleteक़ातिल शिकार से भी अधिक सुर्ख़ियों में है ...
लाज़वाब प्रस्तुति..बेहतरीन गज़ल.
THUSHAR JI Aapne dono gajle salike se kahi hai.. Aap Meri Hardik Badhiya Swekaren. Anek patra-patrikao me aapko padhta rahta hu.. aapke DARSHAN karne ka mann hai.
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