सुरेन्द्र सिंघल हिंदी गज़ल में एक जाना पहचाना नाम है | २५ मई १९४८ को बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश में जन्मे इस कवि की गजले देश की विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होतीं रही हैं | डी .एच .लारेंस की कविताओं पर समीक्षा पुस्तक Where the Demon Speaks प्रकाशित हो चुकी है | सुरेन्द्र सिघल की इंग्लिश में लिखी कविताएँ अंग्रेजी की पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं | जे .वी .जैन पी .जी .कालेज के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत सुरेन्द्र सिंघल रामधारी सिंह दिनकर सम्मान सहित कई सम्मानों से सम्मानित हो चुके |हिंदी गज़ल में सुरेन्द्र सिघल का अंदाज बिलकुल निराला है | सवाल ये है गज़ल पर इनकी चर्चित पुस्तक है जो मेधा बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित है : सुरेन्द्र सिंघल जी की दो ग़ज़लें आज हम आपके साथ साझा कर रहे हैं .......
से साभार |
(१)
वो केवल हुक्म देता है सिपहसालार जो ठहरा
मैं उसकी जंग लड़ता हूँ ,मैं बस हथियार जो ठहरा |
दिखावे की ये हमदर्दी ,तसल्ली खोखले वादे
मुझे सब झेलने पड़ते हैं ,मैं बेकार जो ठहरा |
घुटन लगती न जो कमरे में एक दो खिड़कियाँ होतीं
मैं केवल सोच सकता हूँ किरायेदार जो ठहरा |
तू भागमभाग में इस दौर की शामिल हुई ही क्यों ?
मैं कैसे साथ दूँ तेरा मैं कम रफ़्तार जो ठहरा |
मोहबत्त दोस्ती ,चाहत वफ़ा ,दिल और कविता से
मेरे इस दौर को परहेज है बीमार जो ठहरा |
उसे हर शख्स को अपना बनाना खूब आता है
मगर वो खुद किसी का भी नहीं, हुशियार जो ठहरा |
(२)
जिक्र मत छेड़ तू यहाँ दिल का
कर न बर्बाद वक्त महफ़िल का |
उससे मिलने का वक्त आया है
गूंज जाये न सायरन मिल का |
रेस्तरां में हूँ उसके साथ मगर
खौफ मुझको है चाय के बिल का |
मैं ये समझूंगा जीत है मेरी
हाथ कापें तो मेरे कातिल का |
पांव मेरे हैं रास्ते उनके
खूब है ये सफर भी मंजिल का |
जिक्र मत छेड़ तू यहाँ दिल का
ReplyDeleteकर न बर्बाद वक्त महफ़िल का |
waah....
सुन्दर गज़लें पढ़वाने के लिए आपका आभारी हूं. सिंघल जी को मेरी बधाई - अवनीश सिंह चौहान
ReplyDeleteपांव मेरे हैं रास्ते उनके
ReplyDeleteखूब है ये सफर भी मंजिल का |
बहुत खूब ...।
जिक्र मत छेड़ तू यहाँ दिल का
ReplyDeleteकर न बर्बाद वक्त महफ़िल का
बेमिसाल गज़लें..... सिंघल जी को बधाई....
जिक्र मत छेड़ तू यहाँ दिल का
ReplyDeleteकर न बर्बाद वक्त महफ़िल का
बेमिसाल गज़लें..... सिंघल जी को बधाई....
ब्लॉग पर आने न आने वाले सभी मित्रों शुभचिंतकों को बसंत की हार्दिक बधाईयाँ |
ReplyDeleteब्लॉग पर आने न आने वाले सभी मित्रों शुभचिंतकों को बसंत की हार्दिक बधाईयाँ |
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी की दोनों ग़ज़लें बेहद प्रभावशाली हैं...ग़ज़लों में नवीनता है...पहली ग़ज़ल का काफिया और रदीफ़ एक दम ताज़े हवा के झोंके जैसा है...उसे निभाना आसान नहीं लेकिन सुरेन्द्र जी ने जिस तरह से उसे निभाया है उसे देख कर बरबस मुंह से वाह निकल रही है...दूसरी ग़ज़ल जो छोटी बहर की है में भी सुरेन्द्र जी की कलम का जादू सर चढ़ कर बोलता नज़र आता है...आप ये बताएं की उनकी किताब जिसका जिक्र आपने किया है कहाँ से और कैसे प्राप्त की जा सकती है. मेरी हार्दिक इच्छा है के मैं उस किताब की चर्चा अपने ब्लॉग पर चल रही "किताबों की दुनिया" श्रृंखला में करूँ...आप मेरी मदद करें या मुझे सुरेन्द्र जी का फोन नंबर दें ताकि मैं उनसे बात करके किताब भेजने के लिए आग्रह करूँ....उनकी ये दो ग़ज़लें पढ़ कर मुझे "सवाल ये है" किताब पढने की इच्छा को रोक पाना मुश्किल लग रहा है...
ReplyDeleteउनके ये शेर अपने साथ लिए जा रहा हूँ:-
दिखावे की ये हमदर्दी ,तसल्ली खोखले वादे
मुझे सब देखने पड़ते हैं ,मैं बेकार जो ठहरा |
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घुटन लगती न जो कमरे में एक दो खिड़कियाँ होतीं
मैं केवल सोच सकता हूँ किरायेदार जो ठहरा |
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उससे मिलने का वक्त आया है
गूंज जाये न सायरन मिल का |
***
रेस्तरां में हूँ उसके साथ मगर
खौफ मुझको है चाय के बिल का |
ऐसे बेजोड़ शायर की शायरी से परिचय करवाने हम अच्छी शायरी के समस्त प्रेमी जन आपके आभारी हैं....आपके इस नेक काम की जितनी प्रशंशा की जाय कम ही पड़ेगी...
नीरज
पांव मेरे हैं रास्ते उनके
ReplyDeleteखूब है ये सफर भी मंजिल का |
वैसे तो दोनों ही गज़ले बहुत अच्छी हैं ये शेर काफी पसंद आया...
जय हो :)
ReplyDeleteदिखावे की ये हमदर्दी ,तसल्ली खोखले वादे
ReplyDeleteमुझे सब देखने पड़ते हैं ,मैं बेकार जो ठहरा |
आज के हालात पर सटीक हैं यह पंक्तियाँ ....आपका आभार इतनी शानदार गजलों को हमें पढवाने के लिए ..
दोनों ही गज़लें बहत पसंद आईं ...
ReplyDeleteशुक्रिया इन्हें हम तक पहुंचाने का .....
On behalf of my father Dr Surendra Kumar Singhal, I thank you all for all the kind words and appreciation. Reagrds Major Tanul Singhal #09760007588
ReplyDelete.
ReplyDeleteतू भागमभाग में इस दौर की शामिल हुई ही क्यों ?
मैं कैसे साथ दूँ तेरा मैं कम रफ़्तार जो ठहरा ...
जितनी भी तारीफ की जाए , कम होगी !
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सिंघल साहब की और भी ग़ज़लें ब्लॉग पर डालनी चाहिए।
ReplyDeleteजिक्र मत छेड़ तू यहाँ दिल का
ReplyDeleteकर न बर्बाद वक्त महफ़िल का
बेमिसाल गज़लें. सिंघल जी को बधाई.!
पच्चीस साल पुरानी यादें ताज़ा हो गईं जब रवि पाराशर सिंघल साब की ग़ज़लें तरन्नुम में सुनाया करते थे। उनकी और भी उम्दा रचनाएं यहाँ पढ़वाइये।
ReplyDeleteसाभार
अजित