यह ऋषियों की भूमि
यहां की कथा निराली है।
गंगा की जलधार यहां
अमृत की प्याली है।
हरिद्वार, कनखल, बद्री
केदार यही मिलते
फूलों की घाटी में
अनगिन फूल यहां खिलते,
देवदार चीड़ों के वन
कैसी हरियाली है।
शिवजी की ससुराल
यहीं पर मुनि की रेती है,
दक्ष यज्ञ की कथा
समय को शिक्षा देती है,
मनसा देवी यहीं
यहीं मां शेरावाली है।
हर की पैड़ी जलधारों में
दीप जलाती है,
गंगोत्री यमुनोत्री
अपने धाम बुलाती है,
हेमकुण्ड है यहीं
मसूरी और भवाली है।
पर्वत घाटी झील
पहाड़ी धुन में गाते हैं,
देव यक्ष गंधर्व
इन्हीं की कथा सुनाते हैं,
कहीं कुमाऊं और कहीं
हंसता गढवाली है।
लक्ष्मण झूला शिवानन्द की
इसमें छाया है,
शान्तिकुंज में शांति
यहां ईश्वर की माया है,
यहीं कहीं कुटिया भी
काली कमली वाली है।
भारत माता मंदिर में
भारत का दर्शन है,
सीमा पर हर वीर
यहां का चक्र सुदर्शन है,
इनके जिम्मे हर दुर्गम
पथ की रखवाली है।
उत्सवजीवी लोग यहां
मृदुभाषा बोली है,
यह धरती का स्वर्ग
यहां हर रंग रंगोली है,
वन में कैसी हिरनों की
टोली मतवाली है।
यज्ञ धूम से यहां सुगन्धित
पर्वत नदी गुफाएं
यहीं प्रलय के बाद जन्म लीं
सारी वेद ऋचाएं,
नीलकण्ठ पर्वत की कैसी
छवि सोनाली है।
उत्तराखण्ड के समस्त निवासियों को समर्पित
चित्र uttarakhandevents.com से साभार
अद्भुत शब्द संयोजन .....
ReplyDeleteपर उतराखंड का इतना गुणगान .....?
हमने तो आपकी कविता से ही उत्तराखंड के दर्शन कर लिए ...!!
Behad sundar,jisme geyta hai,aisi rachana!
ReplyDeleteGantantr diwas kee anek shubhkamnayen!
यज्ञ धूम से यहां सुगन्धित
ReplyDeleteपर्वत नदी गुफाएं
यहीं प्रलय के बाद जन्म लीं
सारी वेद ऋचाएं,
नीलकण्ठ पर्वत की कैसी
छवि सोनाली है।
जितना अद्भुत उतराखंड है ...उतनी अद्भुत आपकी कविता .....और क्या कहूँ ....पूरा दृश्य उपस्थित कर दिया आपने ....शुक्रिया
बहुत खूबसूरत चित्रण ... कहीं कहीं मुझे मेरे हिमाचल की याद आगई :) ..... शुभकामनाएँ
ReplyDeleteaap sabhi ko meri kavita/mera geet achchha laga .bahut bahut dhanyvad
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...जीवंत वर्णन
ReplyDeleteadbhut geet ke liye tusharji bahut bahut badhai
ReplyDeletetusharji lucknow se prakasit apratim me aapke do sundar geet dekhe badhai anshu malviya
ReplyDeleteहर की पैड़ी जलधारों में
ReplyDeleteदीप जलाती है,
गंगोत्री यमुनोत्री
अपने धाम बुलाती है,
हेमकुण्ड है यहीं
मसूरी और भवाली है ..
सच है ये ऋषिमुनियों की भूमि है ... जीवन देती धरती है ... नमन है इस धरती को ...
जय बद्री विशाल !!
ReplyDeleteजयकृष्ण जी !! बहुत ही प्यारी रचना है .. हमारे उत्तराखंड पर आपकी कविता शानदार ..पर्वतीय अंचल से तराई हर कोनों को छुवा... आपको इस गजब की रचना के लिए बधाई देती हूँ... सादर अभिनन्दन
आदरणीय जयकृष्ण राय तुषार जी
ReplyDeleteसस्नेहाभिवादन !
उत्तराखण्ड के समस्त निवासियों को समर्पित आपकी रचना पढ़ कर मुझ राजस्थानी का मन भी आनन्दित हो गया ।
सच है, अपनी मातृ भूमि की वंदना करना हर समर्थ कवि को अच्छा लगता है, …और अतिशयोक्ति की पूरी संभावना रहती है ।
मैं तो राजस्थान के गांवों के गोबर से नीपे हुए झोंपड़ों को स्वर्ग के महलों से भी सुंदर बताता हूं … :)कभी किसी पोस्ट में ऐसी रचनाओं की बानगी रखूंगा ।
हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर भाव...अनुपम..बधाई.
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना कल चर्चामंच पर होगी.. वह आ कर आप हमें अपने विचारों से अभिभूत करें |
ReplyDeleteसूर्य अस्त... गढ़वाल मस्त...
ReplyDeleteआपकी इस कविता ने सब यादें ताज़ा कर दीं...
मैंने भी वहां की सुन्दरता के बारे में लिखा था, पर सिर्फ चोप्ता के बारे में...
अति सुंदर चित्रण। एकदम जीवंत चित्र हों जैसे।
ReplyDelete---------
ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
बहुत सुन्दर दर्शन कराया उत्तराखंड का..बहुत सुन्दर शब्द चित्र..आभार
ReplyDeleteUnique and very well explain of Devbhoomi Utarakhand 👏🙏
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