Wednesday, 20 November 2024

एक गीत -सर्द मौसम

 

चित्र साभार गूगल 

एक गीत -सर्द मौसम 

बर्फ़ में गुलमर्ग 

औली 

और शिमला है.

सर्द मौसम में 

गुलाबी 

कोट निकला है.


छतें 

स्वेटर बुन रही हैं 

भाभियों वाली,

बतकही, चुगली 

कड़कती 

चाय की प्याली,

लाँन में 

हर फूल 

खुशबू और गमला है.


हवा ठंडी 

काँपती सी 

लहर नदियों की,

याद आई 

फिर कहानी 

कई सदियों की,

चाँद 

पूनम का भी 

अबकी बार धुंधला है.


पेड़ से 

उड़कर जमीं 

पर लौट आए हैं,

ओंस में 

भींगे परिंदे 

कुनमुनाये हैं,

मौसमी 

दिनमान 

का भी रंग बदला है.

कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 




Saturday, 16 November 2024

हिंदी ग़ज़ल का अक्षर पथ -आलोचना की किताब

  

डॉ नित्यानंद श्रीवास्तव 


हिंदी ग़ज़ल पर आलोचना की महत्वपूर्ण किताब 

हिंदी का अक्षर पथ -

लेखक -डॉ नित्यानंद श्रीवास्तव 


अभी अभी डाक से हिंदी ग़ज़ल आलोचना पर एक अद्भुत शोधपरक किताब"हिंदी ग़ज़ल का अक्षर पथ *मिली. डॉ नित्यानंद श्रीवास्तव गोरखपुर के महंत दिग्विजय नाथ कालेज में हिंदी के प्राध्यापक हैं. निरंतर गूढ विषयों पर लिखते रहते हैं और मेरे प्रेरणास्त्रोत भी हैं. यह किताब ग़ज़ल के उद्भव की प्रचलित धारणाओं को ख़ारिज के उनकी नई स्थापना करती है. ग़ज़ल विधा पर शोध के लिए बहुत उपयोगी पुस्तक को प्रकाशित किया है सर्व भाषा ट्रस्ट ने. मूल्य 499 रूपये पेज 184 हैं.पुस्तक में कुल 9अध्याय हैं.सर्व भाषा ट्रस्ट बहुत बढ़िया प्रकाशन कर रहा है और भविष्य में यह प्रकाशन सामान्य जन के लिए भी उपयोगी होगा. आदरणीय केशव पाण्डेय जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें.


मैं इस पुस्तक के लेखक  और प्रकाशक दोनों को बधाई और शुभकामनायें देता हूँ. साहित्य मनीषयों के बीच यह लोकप्रिय होगी और उपयोगी भी.

सादर

पुस्तक का नाम -हिंदी ग़ज़ल का अक्षर पथ (आलोचना )

लेखक -श्री नित्यानंद श्रीवास्तव 

प्रकाशक -सर्व भाषा ट्रस्ट 

प्रथम संस्करण 2024

मूल्य 499 सजिल्द 



लेखक परिचय 





Sunday, 10 November 2024

एक ग़ज़ल -फूलों की वादियाँ

 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -फूलों की वादियाँ 


पर्वत, पठार, खेत, ये बादल, ये बिजलियाँ

चिड़ियों के साथ गातीं थीं फूलों की वादियाँ 


धानी, हरी ये भूमि थी मौसम भी खुशनुमा 

मुट्ठी में बंद कर हम उड़ाते थे तितलियाँ 


किस्से तमाम घर की अंगीठी के पास थे 

स्वेटर, सलाई, ऊन के जिम्मे थी सर्दियाँ 


बहती नदी में रेत के टीले नहीं थे तब 

दरिया के साफ़ पानी में तिरती थीं मछलियाँ 


कोहबर के साथ हल्दी के छापों की याद है 

मंडप बिना ही शहरों में होती हैं शादियाँ 


मौसम का लोकरंग से रिश्ता था हर समय 

झूलों के साथ गुम हुईं सावन में कजलियाँ 


कवि /शायर 

जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल की किताब -अनुभव है जाना पहचाना

 

कवि /शायर गणेश गंभीर 

एक ग़ज़ल -कवि /शायर गणेश गंभीर 

परिचय -गणेश गंभीर की जन्मभूमि मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश है जहाँ हिंदी की दशा और दिशा बदलने वाले कवि लेखक पैदा हुए. शक्तिपीठ माँ विंध्यवासिनी देवी के साथ मिर्जापुर की कजरी या कज्जली भी प्रसिद्ध है. 1954 में जन्मे श्री गणेश शंकर श्रीवास्तव ही गणेश गंभीर के रूप में साहित्य में सम्मानित है भारतीय डाक सेवा से सेवा निवृत्त हैं. कई git/नवगीत और ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हैं. अनुभव है जाना पहचाना श्वेतवर्णा प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित है मूल्य 160 रूपये है जो सराहनीय है. गणेश गंभीर जी की एक ग़ज़ल 

ग़ज़ल -और कुछ भी नहीं 

दुआ सलाम का रिश्ता था और कुछ भी नहीं 
कभी कभार का मिलना था और कुछ भी नहीं 

अज़ीब लोग हैं राई को कर दिये  पर्वत 
मिली जो आँख तो थिठका था और कुछ भी नहीं 

मोहब्बतों का फ़साना कहा गया जिसको 
किसी का गुजरा ज़माना था और कुछ भी नहीं 

मेरे लिए वो मेरी जिंदगी का मकसद था 
मैं उसके वास्ते रस्ता था और कुछ भी नहीं 

करूँ बयान भला कैफियत में क्या उसकी 
हसीन रात का सपना था और कुछ भी नहीं 

तमाम उम्र जिसे दोस्ती कहा मैंने 
वो एक जाल था, धोखा था और कुछ भी नहीं 

शायर- गणेश गंभीर 

किताब -ग़ज़ल संग्रह *अनुभव है जाना पहचाना *
मूल्य -160 रूपये 
प्रकाशन -श्वेतवर्णा नई दिल्ली 

Friday, 8 November 2024

एक ग़ज़ल -कुशीनगर है यही

 

चित्र साभार गूगल 



कुशीनगर महात्मा बुद्ध का निर्वाण स्थल है और बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल 

एक ग़ज़ल -कुशीनगर है यही 


तमाम जिंदगी का आखिरी सफ़र है यही 

भगवान बुद्ध का प्यारा कुशीनगर है यही 


यहाँ पे धम्म, अहिंसा की बात होती रही 

पवित्र बौद्ध मंदिरो का एक शहर है यही 


ये वन है फूल, तितलियों का ज्ञान वृक्षों का 

सभी के कान में गाता हुआ भ्रमर है यही 


तमाम संतो फकीरों की सिद्ध भूमि यही 

भगवान बुद्ध के निर्वाण से अमर है यही 


सभी का होता है स्वागत सभी से प्रेम यहाँ 

हमेशा मेला सजाये हुए नगर है यही 


जो इसको देखने आया यहीं का हो के गया 

ये बुद्ध पूर्णिमा प्रकाश की डगर है यही 


यहीं समीप में धूनी है नाथ पंथ की भी 

जो सबको बाँध ले जादूभरी नज़र है यही

जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 




ग़ज़ल -मन की नज़र से देखते हैं

 

 

चित्र साभार गूगल 


ये मत पूछो किधर से देखते हैं 

तुम्हें मन की नज़र से देखते हैं 

ये मौसम देखकर खुश हैं परिंदे 
फले फूले शज़र से देखते हैं 

सुने हैं चाँद धुंधला हो गया है 
सभी उसको शहर से देखते हैं 

कुशल तैराक बनने का हुनर है 
चलो कश्ती भंवर से देखते हैं 

किताबों में सही  मंज़र नहीं है
चलो दुनिया सफ़र से देखते हैं 

टिकट लगने लगा है पार्को में 
चलो सूरज को घर से देखते हैं 

हमारे दौर की गज़लें नई हैं 
वो ग़ालिब की बहर से देखते हैं 

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 

Thursday, 7 November 2024

हिंदी ग़ज़ल में है

 

 

चित्र साभार गूगल 

एक ताज़ा ग़ज़ल -हिंदी ग़ज़ल में है 


उर्दू ग़ज़ल है इश्क, मोहब्बत महल में है 

जीवन का लोक रंग तो हिंदी ग़ज़ल में है


नदियों के साथ झील भी, दरिया भी,कूप भी 

लेकिन कहाँ वो पुण्य जो गंगा के जल में है 


मेरी ग़ज़ल तमाम रिसालों में छप गयी 

अनजान है इक दोस्त जो घर के बगल में है 


दरिया में चाँद देखके सब लोग थे मगन 

आँखों को सच पता था ये छाया असल में है 


धरती को फोड़ करके निकलते हैं सारे रंग 

सरसों का पीला रंग भी धानी फसल में है 


खुशबू के साथ सैकड़ों रंगों के फूल हैं 

रिश्ता गज़ब का दोस्तों कीचड़ कमल में है

 

वैसे शपथ लिए थे सभी संविधान की 

लेकिन कहाँ ईमान का जज़्बा अमल में है 


 कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 




Wednesday, 6 November 2024

ग़ज़ल -हिरन की प्यास

 

चित्र साभार गूगल 

एक ताज़ा ग़ज़ल -हिरन की प्यास 

सुनहरे जाल फैलाकर ये दुनिया प्यार देती है 
हिरन की प्यास ही अक्सर हिरन को मार देती है 

नदी के तट शिकारी भी, अघोरी भी, परिंदे भी 
ये अपने छल को कितने रंग और आकार देती है 

किताबें संत भी गढ़ती हैं, नक्सल भी बनाती हैं 
मगर गीता हमारी सोच को विस्तार देती है 

नदी, पर्वत, चहकते वन, कहीं फूलों की घाटी है 
प्रकृति धरती को कितने रंग का श्रृंगार देती है 

लुभाते थे कभी बच्चों को तितली, फूल खेतों में 
नए कान्वेंट की कल्चर अब बचपन मार देती है 

मोहब्बत के ख़तों में भी कभी दर्शन था जीवन का 
मोहब्बत आजकल बस ज़िस्म को बाज़ार देती है 

ये किस्मत कब किसे क्या दे उसे मालूम है केवल 
कभी आँसू के गुलदस्ते कभी उपहार देती है 

कवि /शायर 
जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


Friday, 1 November 2024

एक ग़ज़ल -हजार रंग के मौसम

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -हजार रंग के मौसम 


हज़ार रंग के मौसम सफ़र में मिलते हैं 

कहाँ ये झील -शिकारे शहर में मिलते हैं 


तिलस्म ऐसा मोहब्बत में सिर्फ़ होता है 

हमारे अक्स किसी की नज़र में मिलते हैं 


यकीन हो न तो कान्हा की बांसुरी सुन लो 

तमाम रंग सुरों के अधर में मिलते हैं 


संवर के आना ये महफ़िल बड़े अदीबों की 

लिबास सादा पहनके वो घर में मिलते हैं 


भिंगो के पँख जो संगम में उड़ के गाते रहे 

तमाम ऐसे परिंदे लहर में मिलते हैं 


अँधेरी रातों में जिद्दी दिए जो जलते रहे 

कहाँ चराग अब ऐसे सफ़र में मिलते हैं 


यूँ तुमको देख के सब तालियाँ बजाते रहे 

कुछ अच्छे शेर ही अच्छी बहर में मिलते हैं 


जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


Sunday, 27 October 2024

ग़ज़ल -समंदर से उठे हैं या नहीं

 

चित्र साभार गूगल


समंदर से उठे हैं या नहीं बादल ये रब जाने 
नजूमी बाढ़ का मज़र लगे खेतों को दिखलाने 

नमक से अब भी सूखी रोटियां मज़दूर खाते हैं 
भले ही कृष्ण चंदर ने लिखे हों इनपे अफ़साने 

रईसी देखनी है मुल्क की तो क्यों भटकते हो 
सियासतदां का घर देखो या फिर बाबू के तहखाने 

मुसाफिऱ छोड़ दो चलना ये रस्ता है तबाही का 
यहाँ हर मोड़ पे मिलते हैं साक़ी और मयखाने 

चलो जंगल से पूछें या पढ़े मौसम की खामोशी 
परिंदे उड़ तो सकते हैं मगर गाते नहीं गाने 

ये वो बस्ती है जिसमें सूर्य की किरनें नहीं पहुँची 
करेंगे जानकर भी क्या ये सूरज -चाँद के माने 

सफ़र में साथ चलकर हो गए हम और भी तन्हा 
न उनको हम कभी जाने न वो हमको ही पहचाने 

जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


एक गीत -सर्द मौसम

  चित्र साभार गूगल  एक गीत -सर्द मौसम  बर्फ़ में गुलमर्ग  औली  और शिमला है. सर्द मौसम में  गुलाबी  कोट निकला है. छतें  स्वेटर बुन रही हैं  भा...