चित्र -गूगल से साभार |
गीत -इनसे कुछ मत कहना साथी
परधानों के
हिस्से आई
खेतों की हरियाली |
मजदूरों के
हिस्से स्लम की
बहती गन्दी नाली |
इनसे कुछ
मत कहना साथी
मौसम हुए पठारी ,
जंगल को
झुलसा देने की
है पूरी तैयारी ,
रोटी -दाल
हमें क्या देंगे
छीन रहे ये थाली |
सिर पर
भारी बोझ
हवा का रुख खिलाफ़ है ,
सत्ता
जिसकी- उसका
सारा कर्ज माफ़ है ,
सूदखोर
के लिए फसल की
हम करते रखवाली |
खेल तमाशा
और सियासत
चाहे जितना कर लो ,
लेकिन इस
निरीह जनता का
कुछ दुःख राजा हर लो ,
जनता होगी
तब होंगे ये
इन्द्रप्रस्थ ,वैशाली |
ईश्वर ने तो सबके लिये सब कुछ दिया, हमने ही उसे ऐसे बाँट दिया
ReplyDeleteकटु सत्य से आहत करता बेहतरीन नवगीत।
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05-04-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ......सुनो मत छेड़ो सुख तान .
हम सुकरात
ReplyDeleteहमारे हिस्से
सिर्फ़ जहर की प्याली |
गहन सत्य ....मर्मस्पर्शी रचना ...!!
बहुत बढ़िया लिखा है ...!
शुभकामनायें ....
बहुत सुंदर गीत के माध्यम से सत्य कहा है ॥
ReplyDeleteजिस राजा में सेवा भाव जग गया...वो ही प्रजा का दर्द समझ सकता है...बाकि तो सब भोग-विलास में लिप्त हो जाते हैं...
ReplyDeleteसच्चाई बयां करती प्रस्तुति
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