Wednesday, 4 April 2012

एक गीत -इनसे कुछ मत कहना साथी

चित्र -गूगल से साभार 
गीत -इनसे कुछ मत कहना साथी 
परधानों के 
हिस्से आई 
खेतों की हरियाली |
मजदूरों के 
हिस्से स्लम की 
बहती गन्दी नाली |

इनसे कुछ 
मत कहना साथी 
मौसम हुए पठारी ,
जंगल को 
झुलसा देने की 
है पूरी  तैयारी ,
रोटी -दाल 
हमें क्या देंगे 
छीन रहे ये थाली |

सिर पर 
भारी बोझ 
हवा का रुख खिलाफ़ है ,
सत्ता 
जिसकी- उसका 
सारा कर्ज  माफ़ है ,
सूदखोर 
के लिए फसल की 
हम करते रखवाली |

खेल तमाशा 
और सियासत 
चाहे जितना कर लो ,
लेकिन इस 
निरीह जनता का 
कुछ दुःख राजा हर लो ,
जनता होगी 
तब होंगे ये 
इन्द्रप्रस्थ ,वैशाली |


हम तो 
हारी प्रजा, हमेशा 
लाक्षागृह में जलते ,
कितने  बड़े 
अभागे हमसे 
विदुर तक नहीं मिलते ,
हम सुकरात 
हमारे हिस्से 
सिर्फ़ जहर की प्याली |
चित्र -गूगल से साभार 

7 comments:

  1. ईश्वर ने तो सबके लिये सब कुछ दिया, हमने ही उसे ऐसे बाँट दिया

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  2. कटु सत्य से आहत करता बेहतरीन नवगीत।

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  3. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05-04-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ......सुनो मत छेड़ो सुख तान .

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  4. हम सुकरात
    हमारे हिस्से
    सिर्फ़ जहर की प्याली |
    गहन सत्य ....मर्मस्पर्शी रचना ...!!
    बहुत बढ़िया लिखा है ...!
    शुभकामनायें ....

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  5. बहुत सुंदर गीत के माध्यम से सत्य कहा है ॥

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  6. जिस राजा में सेवा भाव जग गया...वो ही प्रजा का दर्द समझ सकता है...बाकि तो सब भोग-विलास में लिप्त हो जाते हैं...

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  7. सच्चाई बयां करती प्रस्तुति

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