Thursday, 29 March 2012

एक गीत-मुल्क हमारा रब ही सिर्फ़ चलाता है

चित्र गूगल से साभार 
मुल्क हमारा रब ही सिर्फ़ चलाता है 
राजा 
करता वही 
उसे जो भाता है |
कवि 
कविता लिखता 
जनगीत न  गाता है |

राजधर्म के 
सब दरवाजे 
बन्द मिले ,
सरहद के 
भीतर कसाब -
जयचन्द मिले ,
बन्दी 
पृथ्वीराज 
सिर्फ़ पछताता है |

गोदामों 
के बाहर 
गेहूँ सड़ता है ,
नेता 
रोज तिलस्मी 
भाषण पढ़ता है ,
कर्ज
चुकाने में 
किसान मर जाता है |

उनकी 
दूरंतो 
अपनी नौचन्दी है ,
संसद से 
मत सच 
कहना पाबन्दी है ,
संविधान 
बस अपना 
भाग्यविधाता है |

पौरुष है 
लड़ने का पर 
हथियार नहीं है ,
सिर पर 
पगड़ीवाला 
अब सरदार नहीं है ,
मुल्क 
हमारा रब ही 
सिर्फ़ चलाता है |
[मेरी यह कविता आज [31-03-2012 ] अमर उजाला काम्पैक्ट में प्रकाशित है सिर्फ़ इलाहाबाद संस्करण के आलावा|साभार अमर उजाला | ]

13 comments:

  1. देश समाज की विडम्बना को सटीक बिम्बों से आपने खींचा है।

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  2. बिलकुल सही कहा है देश अपना अब रब ही चलाता है

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  3. मुखर अभिव्यक्ती को स्वर मिला है सार्थक सफल संदेस के लिए बधाई .....

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  4. सिर पर
    पगड़ीवाला
    अब सरदार नहीं है ,sahi bat.

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  5. कल ही पढ़ ली थी कविता फेसबुक पर, वाकई उसी के वश का है!

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  6. मुल्क
    हमारा रब ही
    सिर्फ़ चलाता है |

    Sach hi hai....

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  7. सामयिक परिस्थितियों पर कटाक्ष करती सहज कविता।

    ReplyDelete
  8. सटीक बिम्ब ....बढ़िया रचना

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  9. पौरुष है
    लड़ने का पर
    हथियार नहीं है ,
    सिर पर
    पगड़ीवाला
    अब सरदार नहीं है ,
    मुल्क
    हमारा रब ही
    सिर्फ़ चलाता है |

    ___________________


    क्या करें ?????????

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  10. http://urvija.parikalpnaa.com/2012/04/blog-post.html

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  11. सच!!!!!!!!!!!!!

    भगवान भरोसे ही चल रहा है.....

    बहुत बढ़िया.

    सादर.
    अनु

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  12. कोई शक...जिस देश में कानून व्यवस्था ना हो...वहां भगवान ही बसता है...इतने बाबा इसी धरा पर क्यों अवतरित हुए...ताकि भगवान की सत्ता की आड़ में शासन की कुव्यवस्था को छिपाया जा सके...

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