Monday, 1 December 2025

गीत नहीं मरता है साथी

 

चित्र साभार गूगल

एक पुराना गीत -

गीत नहीं मरता है साथी 


गीत नहीं 

मरता है साथी 

लोकरंग में रहता है |

जैसे कल कल 

झरना बहता 

वैसे ही यह बहता है |


खेतों में ,फूलों में 

कोहबर 

दालानों में हँसता है ,

गीत यही 

गोकुल ,बरसाने 

वृन्दावन में बसता है , 

हर मौसम की 

मार नदी के 

मछुआरों सा सहता है |


इसको गाती 

तीजनबाई 

भीमसेन भी गाता है ,

विद्यापति 

तुलसी ,मीरा से 

इसका रिश्ता नाता है ,

यह कबीर की 

साखी के संग 

लिए लुकाठी रहता है |


यही गीत था 

जिसे जांत के-

संग बैठ माँ गाती थी ,

इसी गीत से 

सुख -दुःख वाली 

चिट्ठी -पत्री आती थी ,

इसी गीत से 

ऋतुओं का भी 

रंग सुहाना रहता है |


सदा प्रेम के 

संग रहा पर 

युद्ध भूमि भी जीता है ,

वेदों का है 

उत्स इसी से 

यह रामायण, गीता है ,

बिना शपथ के 

बिना कसम के 

यह केवल सच कहता है |

चित्र साभार गूगल


पेंटिंग्स गूगल से साभार

13 comments:

  1. बहुत सुंदर , भावपूर्ण गीत सर।
    सादर।
    -----
    नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २ दिसम्बर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. Replies
    1. हार्दिक आभार. सादर अभिवादन

      Delete
  3. Replies
    1. हार्दिक आभार. सादर अभिवादन

      Delete
  4. गीत कभी पुराना नहीं होता, जो सदा नया है वही तो गीत है

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार सादर अभिवादन

      Delete
  5. बहुत खूबसूरत सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार. सादर अभिवादन

      Delete
  6. Replies
    1. हार्दिक आभार. सादर अभिवादन

      Delete
  7. आप जिस सादगी से “गीत” को ज़िंदगी की हर धड़कन से जोड़ते हो, वो दिल को सीधा पकड़ लेता है। मैं हर पैरा पढ़ते हुए खेत, दालान, कोहबर और माँ की वो धीमी तान महसूस करता हूँ। आपने लोक की मिट्टी और संतों की परंपरा को इतने प्यार से जोड़ दिया कि गीत एकदम जीवंत हो उठा।

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

गीत नहीं मरता है साथी

  चित्र साभार गूगल एक पुराना गीत - गीत नहीं मरता है साथी  गीत नहीं  मरता है साथी  लोकरंग में रहता है | जैसे कल कल  झरना बहता  वैसे ही यह बहत...