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| चित्र साभार गूगल |
एक ताज़ा प्रेमगीत
बहुत दिनों के
बाद आज फिर
फूलों से संवाद हुआ.
हँसी -ठिठोली
मिलने -जुलने का
किस्सा फिर याद हुआ.
पानी की लहरों
पर तिरते
जलपंछी टकराये फिर,
पत्तों में उदास
बुलबुल के
जोड़े गीत सुनाये फिर
आज प्रेम की
लोक कथा का
भावपूर्ण अनुवाद हुआ.
खुले -खुले
आँगन में कोई
खुशबू वंशी टेर रही,
भ्रमरों को
सतरंगी तितली की
टोली फिर घेर रही,
बंदी गृह से
जैसे कोई
मौसम फिर आज़ाद हुआ.
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल
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बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteसुंदर संवाद हुआ फूलों से ।
ReplyDeleteआज फिर फूलों से संवाद हुआ बहुत सुंदर ।
ReplyDeletebahut sundar lambe samy baad aapko padha
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