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| चित्र साभार गूगल | 
एक ग़ज़ल
साज साजिन्दे सभी महफ़िल में घबराने लगे
सब घराने आपकी मर्ज़ी से ही गाने लगे
भूल जाएगा ज़माना दादरा, ठुमरी, ग़ज़ल
अब नई पीठी को शापिंग माल ही भाने लगे
जिंदगी भी दौड़ती ट्रेनों सी ही मशरूफ़ है
आप मुद्द्त बाद आए और अभी जाने लगे
झील में पानी, हवा में ताज़गी मौसम भी ठीक
फूल में खुशबू नहीं भौँरे ये बतियाने लगे
प्यार से लोटे में जल चावल के दाने रख दिए
फिर कबूतर छत में मेरे हाथ से खाने लगे
हम भी बचपन में शरारत कर के घर में छिप गए
अब बड़े होकर ज़माने भर को समझाने लगे
बीच जंगल से गुजरते अजनबी को देखकर
आदतन ये रास्ते फिर फूल महकाने लगे
देखकर प्रतिकूल मौसम उड़ गए संगम से जो
ये प्रवासी खुशनुमा मौसम में फिर आने लगे
कवि जयकृष्ण राय तुषार
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| चित्र साभार गूगल | 
 
 
 
 
 
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 03 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार. अभिवादन
Deleteहम भी बचपन में शरारत कर के घर में छिप गए
ReplyDeleteअब बड़े होकर ज़माने भर को समझाने लगे
वाह!!!
क्या बात...
लाजवाब गजल👌👌🙏🙏
,,
हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई. सादर अभिवादन
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 6 अगस्त 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
Deleteवाह!! बेहतरीन !
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
Deleteबहुत खूबसूरत गज़ल हुई ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई साहब
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