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चित्र -गूगल से साभार |
धूप -तीखे
मोड़ पर मिलने लगी है |
जरा सी बात पूरे
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चित्र -गूगल से साभार |
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चित्र साभार गूगल |
एक गीत -दिल्ली में यमुना का उत्सव
दिल्ली में यमुना की सफाई पर नई सरकार की पहल सराहनीय है. देश की नदियाँ हमारे पर्व उत्सव और जीवन को उल्लासमय बनाती हैं. सभी नदियों को सम्मान और आदर देना होगा तभी सृष्टि बचेगी.
दिल्ली में
यमुना के जल में
शंख बजाते लोग.
कालिंदी की
मुक्ति के लिए
मन्त्र सुनाते लोग.
इंसानों की
बस्ती जल में
गाद भर गयी है,
कृष्ण प्रिया की
रोते -रोते
आँख भर गयी है,
पंडित के
संग फिर पूजा की
थाल सजाते लोग.
नदियाँ अगर
मृत हुईं
उत्सव कहाँ मनाएंगे,
किसके
तट पर व्यास
भागवत कथा सुनाएंगे,
द्वापर जैसा
यमुना जल में
कहाँ नहाते लोग.
मगरमच्छ मत
बनिए, बनिए
भक्त भगीरथ सा,
हर सरिता का
घाट सजे फिर
पावन तीरथ सा,
कंस मरा
फिर यमुना तट पर
फूल चढ़ाते लोग.
हरी दूब के
दिन फिर लौटे
प्रातः वंदन है,
एक उपेक्षित
माँ का घर में फिर
अभिनंदन है,
संध्याओं को
लहर -लहर पर
दीप जलाते लोग.
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
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चित्र साभार गूगल |
आप सभी का दिन शुभ हो
एक प्रेम गीत -उसकी यादों में मैं गीत सुनाता हूँ
आसपास है कोई
जिसको ख़बर नहीं
उसकी यादों में
मैं गीत सुनाता हूँ.
हँसी होंठ पर और
आँख में पानी है,
मौसम भी ये गीतों
भरी कहानी है,
तितली, फूल, पतंगे,
बारिश में जुगनू
मैं अपनी कविता में
यही सजाता हूँ.
मुझे देख रुपसियों ने
श्रृंगार किया,
मैं दरपन था मुझसे
किसने प्यार किया,
मिटी नहीं तसवीर
सुनहरी यादों की
मैं अलिखित पत्रों में
फूल सजाता हूँ.
यात्राओं में मिला
मगर संवाद नहीं,
इंद्रधनुष को
बंज़रपन की याद नहीं,
नये नये चंदन वन
की ये खुशबू है
मैं खुशबू के साथ
नहीं उड़ पाता हूँ.
हर मौसम में देखे
नदियों की धारा,
सामवेद कैसे गाता
मैं बंजारा,
वीणा संग मृदंग और
कुछ मादल भी
वंशी लेकर वृन्दावन
तक जाता हूँ.
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चित्र साभार गूगल |
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चित्र साभार गूगल |
एक ताज़ा गीत -गंगा सा निर्मल मन
गंगा सा
निर्मल मन
माथ -माथ चंदन है.
संगम की
रेती में
सबका अभिनन्दन है.
थके -थके
पाँव मगर
मन में उत्साह प्रबल,
महाकुम्भ
दर्शन को
आतुर है विश्व सकल,
मणिपुर-
केरल,काशी,
पेरिस औ लंदन है.
कालिंदी
गंगा का सुखद
मिलन बिंदु यही,
भक्तों की
आस्था का
एक महासिंधु यही,
संत और
अखाड़ों का
यहाँ वहाँ वंदन है.
ब्रह्मा की
यज्ञ भूमि
तीर्थराज कहते हैं,
द्वादश माधव
इसमें रक्षक
बन रहते हैं,
यह तो
रविदास की
कठौती का कँगन है.
कवि
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल चित्र साभार गूगल एक ताज़ा गीत -लहरें गिनना भूल गए झीलों में पत्थर उछालकर लहरें गिनना भूल गए. अपने मन की आवाज़ों को कैसे ...