Tuesday, 1 March 2022

एक ग़ज़ल-अब अंधेरे में कोई हाथ दबाता है कहाँ

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-लौट के आता है कहाँ


नाव से उतरे मुसाफ़िर को बुलाता है कहाँ

जो भी उस पार गया लौट के आता है कहाँ


घाट संगम का,बनारस का या हरिद्वार का हो

सूखे दरिया को कोई फूल चढ़ाता है कहाँ


फूल की शाख से टूटे या हरे पेड़ों से

ऐसे पत्तों को कोई शख़्स उठाता है कहाँ


इस मोहब्बत में नज़ाकत न शराफ़त है कहीं

अब अंधेरे में कोई हाथ दबाता है कहाँ


अधजली बीड़ियाँ खलिहान जला देती हैं

वक्त पे अब्र कभी आग बुझाता है कहाँ


आम के पेड़ों पे तोते अभी गाते होंगे

बन्द पिंजरे में परिंदा कोई गाता है कहाँ


घर से बाहर भी कई घर थे मेरे दोस्त कभी

अब तो मुश्किल में कोई दोस्त भी आता है कहाँ

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


14 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 4358 में दिया जाएगा | चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

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  2. आम के पेड़ों पे तोते अभी गाते होंगे

    बन्द पिंजरे में परिंदा कोई गाता है कहाँ

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  3. एक अलग मिज़ाज एक अलग माइंड सेट करती है आपकी ये गजल. हर शेर जोरदार
    अब अँधेरे में कोई हाथ दबाता है कहाँ.... वाह वाह.
    Welcome to my New post- धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा

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  4. वाह! बेहतरीन शायरी

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  5. वाह! बहुत उम्दा बहुत खूबसूरत ग़ज़ल।

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