![]() |
काशी विश्वनाथ ,वाराणसी |
![]() |
जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज श्रीमठ ,काशी |
एक आस्था का गीत -यह काशी अविनाशी साधो !
यह काशी
अविनाशी साधो !
इसके रंग निराले हैं |
गोद लिए है
गंगा इसको
घर -घर यहाँ शिवाले हैं |
शंकर के
डमरू ,त्रिशूल पर
टिकी हुई यह काशी है ,
इसकी सांसों
में चन्दन है
मौसम बारहमासी है ।
कापालिक
सी रातें इसकी
वैदिक मन्त्र उजाले हैं ।
कापालिक
सी रातें इसकी
वैदिक मन्त्र उजाले हैं ।
जाति -धर्म
का भेद न जानै
सबको गले लगाती है ,
शंकर को
अद्वैतवाद का
अर्थ यही समझाती है ,
मणिकर्णिका
मोक्षद्वार है
लेकिन अनगिन ताले हैं |
रामनरेशाचार्य
जगद्गुगुरु
न्याय शास्त्र के ज्ञाता हैं,
श्रीमठ मठ के
संत शिरोमणि
रामकथा उदगाता हैं,
रामानन्द की
परम्परा के
पोषक हैं रखवाले हैं।
काशिराज ! को
नमन मालवीय
की शिक्षा का धाम यहाँ ,
रामानन्द
तुलसी ,कबीर संग
साधक कीनाराम यहाँ ,
यहाँ कठौती
में हँसकर
गंगा को लाने वाले हैं |
बिस्मिल्ला खां
की शहनाई
तबला इसकी जान है,
खायके पान
बनारस वाला
यहीं कहीं "अनजान" है ,
गिरिजा देवी
की ठुमरी के
सारे रंग निराले हैं |
संकट मोचन
भैरव की छवि
सिद्ध -असिद्ध को प्यारी है ,
पाँच कोस में
बसी हुई
यह काशी सबसे न्यारी है ,
नागा ,दंडी ,
बौद्ध ,अघोरी
इसे पूजने वाले हैं |
गाँजा पीते
चिलम फूँकते
अस्सी निर्गुण गाता है,
चित्रकार
तूलिका रंग ले
अनगिन चित्र बनाता है,
ज्ञान ,धर्म
दर्शन के संग -संग
यहाँ अखाड़े वाले हैं |
दर्शन के संग -संग
यहाँ अखाड़े वाले हैं |
करपात्री ,तैलंग
विशुद्धानन्द
यहीं के वासी हैं
इसमें
वरुणा बहती
गंगा घाट यहाँ चौरासी हैं ,
हर हर महादेव
जब गूँजे
समझो काशी वाले हैं |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
![]() |
आदि शंकराचार्य |
![]() |
काशी -वाराणसी |