Friday, 23 September 2016

एक गीत -गीत नहीं मरता है साथी



पेंटिंग्स गूगल से साभार 

एक गीत -गीत नहीं मरता है साथी 
गीत नहीं 
मरता है साथी 
लोकरंग में रहता है |
जैसे कल कल 
झरना बहता 
वैसे ही यह बहता है |

खेतों में ,फूलों में 
कोहबर 
दालानों में हँसता है ,
गीत यही 
गोकुल ,बरसाने 
वृन्दावन में बसता है , 
हर मौसम की 
मार नदी के 
मछुआरों सा सहता है |

इसको गाती 
तीजनबाई 
भीमसेन भी गाता है ,
विद्यापति 
तुलसी ,मीरा से 
इसका रिश्ता नाता है ,
यह कबीर की 
साखी के संग 
लिए लुकाठी रहता है |

यही गीत था 
जिसे जांत के-
संग बैठ माँ गाती थी ,
इसी गीत से 
सुख -दुःख वाली 
चिट्ठी -पत्री आती थी ,
इसी गीत से 
ऋतुओं का भी 
रंग सुहाना रहता है |

सदा प्रेम के 
संग रहा पर 
युद्ध भूमि भी जीता है ,
वेदों का है 
उत्स इसी से 
यह रामायण, गीता है ,
बिना शपथ के 
बिना कसम के 
यह केवल सच कहता है |
पेंटिंग्स गूगल से साभार 

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-09-2016) को "जागो मोहन प्यारे" (चर्चा अंक-2475) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर ..

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ताज़ा गीत -लहरें गिनना भूल गए

  चित्र साभार गूगल चित्र साभार गूगल एक ताज़ा गीत -लहरें गिनना भूल गए झीलों में पत्थर  उछालकर  लहरें गिनना भूल गए. अपने मन की  आवाज़ों को कैसे ...