चित्र -गूगल से साभार |
एक गंगा गीत
फूल -माला
मत चढ़ाओ
धार गंगा की बचाओ |
मन्त्र पढ़ने
से जरुरी
भक्त जन कचरा उठाओ |
लहर जिस पर
चांदनी के फूल
झरते थे कभी ,
देव- ऋषि
अपने सभी
जलपात्र भरते थे कभी ,
उस नदी के
नयन से
अब अश्रुधारा मत बहाओ |
सिर्फ गंगा
नहीं चम्बल
बेतवा -यमुना तुम्हारी ,
ये रहेंगी
तब रहेगी
श्यामला धरती हमारी ,
इस भयावह
दौर में कोई
भागीरथ ढूंढ लाओ |
यह नदी
होगी तभी
ये पर्व ये मेले रहेंगे ,
सिर्फ़ नारों से
नहीं ये
विष भरे कचरे बहेंगे ,
उठो
स्वर्णिम धार
सार्थक रचना
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