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चित्र -गूगल से साभार |
अनकहा ही
रह गया कुछ
रह गया कुछ
रख दिया तुमने रिसीवर |
हैं प्रतीक्षा में
तुम्हारे
आज भी कुछ प्रश्न- उत्तर |
हैलो ! कहते
मन क्षितिज पर
कुछ सुहाने रंग उभरे ,
एक पहचाना
सुआ जैसे
सिंदूरी आम कुतरे ,
फिर किले पर
गुफ़्तगू
करने लगे बैठे कबूतर |
नहीं मन को
जो तसल्ली
मिली पुरवा डोलने से ,
गीत के
अक्षर सभी
महके तुम्हारे बोलने से ,
हुए खजुराहो -
अजंता
युगों से अभिशप्त पत्थर |
कैनवस पर
रंग कितने
तूलिका से उभर आये ,
वीथिकाओं में
कला की
मगर तुम सा नहीं पाये ,
तुम हंसो तो
हंस पड़ेंगे
घर ,शिवाले, मौन दफ़्तर |
सफ़र में
हर पल तुम्हारे
साथ मेरे गीत होंगे ,
हम नहीं
होंगे मगर ये
रात -दिन के मीत होंगे ,
यही देंगे
भ्रमर गुंजन