चित्र -गूगल से साभार |
अनकहा ही
रह गया कुछ
रह गया कुछ
रख दिया तुमने रिसीवर |
हैं प्रतीक्षा में
तुम्हारे
आज भी कुछ प्रश्न- उत्तर |
हैलो ! कहते
मन क्षितिज पर
कुछ सुहाने रंग उभरे ,
एक पहचाना
सुआ जैसे
सिंदूरी आम कुतरे ,
फिर किले पर
गुफ़्तगू
करने लगे बैठे कबूतर |
नहीं मन को
जो तसल्ली
मिली पुरवा डोलने से ,
गीत के
अक्षर सभी
महके तुम्हारे बोलने से ,
हुए खजुराहो -
अजंता
युगों से अभिशप्त पत्थर |
कैनवस पर
रंग कितने
तूलिका से उभर आये ,
वीथिकाओं में
कला की
मगर तुम सा नहीं पाये ,
तुम हंसो तो
हंस पड़ेंगे
घर ,शिवाले, मौन दफ़्तर |
सफ़र में
हर पल तुम्हारे
साथ मेरे गीत होंगे ,
हम नहीं
होंगे मगर ये
रात -दिन के मीत होंगे ,
यही देंगे
भ्रमर गुंजन
बहुत सुंदर गीत ....
ReplyDeleteआपका बहुत -बहुत शुक्रिया आदरणीय डॉ मोनिका जी |
ReplyDeleteअति सुंदर...
ReplyDeleteअति सुन्दर गीत...
ReplyDeletehttp://mauryareena.blogspot.in/
:-)
वह कितना सुन्दर रूमान गीत
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (21-01-2014) को "अपनी परेशानी मुझे दे दो" (चर्चा मंच-1499) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
खूबशूरत,बेहतरीन प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: आप इतना यहाँ पर न इतराइये.
अति सुंदर गीत जिसके लिए रचा है, और अभिव्यक्त करने को क्या बचा है।
ReplyDeleteअहा, पढ़कर आनन्द आ गया। प्रतीकों का सुन्दर उपयोग भाव व्यक्त करने में।
ReplyDeleteआदरनीय प्रवीण पाण्डेय जी अग्रज अरविन्द मिश्र जी ,रीना जी,अमृता तन्मय जी भाई वाणभट्ट जी भदौरिया जी ,और आदरणीय शास्त्री जी आप सभी का उम्दा टिप्पणी देने के लिए बहुत -बहुत आभार
ReplyDeleteनए भाव.. नए बिम्ब .. लाजवाब बन गया ये गीत ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत...
ReplyDelete~सादर
मन के भावों से सजी मनभावन भावपूर्ण अभिव्यति...
ReplyDeleteपढ़कर आनन्द आ गया।
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