चित्र -गूगल से साभार |
फूलों की घाटी में मौसम
फूलों की
घाटी में मौसम की
फूलों की
घाटी में मौसम की
हथेलियाँ रंगीं खून से |
ओ सैलानी !
अब मत जाना
प्रकृति रौदने इस जूनून से |
बे-मौसम
फट गए झील में
कालिदास के विरही बादल ,
नहीं आचमन
के लायक अब
मंदाकिनियों के पवित्र जल ,
मंगल कलश
अमंगल लेकर
लौटे घाटी और दून से |
देवदार से
आच्छादित वन
शोक गीत गाने में उलझे ,
इस रहस्यमय
जलप्लावन के
प्रश्न अभी भी हैं अनसुलझे ,
ओ हिमगिरि
क्यों इतनी नफ़रत
तुम्हेँ हो गयी मई -जून से |
ओ बदरी -केदार !
तुम्हारी शांति -भंग
के हम हैं दोषी ,
अब बुरुंश के
फूलों ने भी
तोड़ दिया अपनी ख़ामोशी ,
रस्ते वही
अगम्य हो गए
बरसों तक जो थे प्रसून से |
इन्द्रधनुष की
मोहक आभा
पल-भर में ही प्रलय हो गई ,
अंतहीन
लालच मानव की
देख प्रकृति की भृकुटी तन गई ,
दर्द पहाड़ों का
भी पढ़ना होगा
sundar praasangik
ReplyDeleteआपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 03/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (01-07-2013) को प्रभु सुन लो गुज़ारिश : चर्चा मंच 1293 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
भाई राजेन्द्र शर्मा जी ,आदरणीय मयंक जी और आदरणीय यशोदा जी आप सभी का बहुत -बहुत आभार |
ReplyDeleteहे विशाल सा हृदय समेटे, हे पर्वत क्यों व्यथित हुये तुम?
ReplyDelete"अंतहीन
ReplyDeleteलालच मानव की
देख प्रकृति की भृकुटी तन गई"
फूट पड़े कवि के उदगार !
अंतहीन
ReplyDeleteलालच मानव की
देख प्रकृति की भृकुटी तन गई"
फूट पड़े कवि के उदगार !
RECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
lajwab-***
ReplyDeleteप्रासंगिक अर्थपूर्ण पंक्तियाँ
ReplyDeleteबे-मौसम
ReplyDeleteफट गए झील में
कालिदास के विरही बादल ,
नहीं आचमन
के लायक अब
मंदाकिनियों के पवित्र जल ,
मंगल कलश
अमंगल लेकर
लौटे घाटी और दून से |
दर्द पहाड़ों का
ReplyDeleteभी पढ़ना होगा
अब हमको सुकून से |
..बहुत सही ..यह दर्द सालों साल मन को सालता रहेगा ...