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कवि /आलोचक डॉ० प्रेमशंकर
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परिचय -
वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी पूर्ण कालीन अध्यक्ष के पद को सुशोभित कर रहे डॉ० प्रेम शंकर हिन्दी नवगीत विधा के अप्रतिम कवि हैं |डॉ० प्रेम शंकर न केवल कवि हैं बल्कि हिन्दी के उद्भट विद्वान और महत्वपूर्ण लेखक हैं |नवगीत लेखन में जब यह कवि प्रेम को अभिव्यक्त करता है तो नितांत ताजे बिम्बों प्रतीकों से कविता का एक अप्रतिम रूप हमारे सामने आता है |शहरी भाव बोध से लेकर ग्रामीण अंचल की खूबसूरती इनकी कविताओं की विशेषता है |डॉ० प्रेम शंकर कविता के भाव ,शिल्प ,समकालीन सोच के साथ नए -प्रतीकों और प्रयोगों के साथ एक सधे हुए कुम्हार की तरह कविता के घड़े को सुघर बनाते हैं |डॉ० प्रेम शंकर की कविता बेडरूम से निकलकर उनकी कल्पना की सहचरी नहीं बनती बल्कि उनके जीवन के व्यापक अनुभव और दृष्टिकोण से छनकर ताजा खिली धूप बनकर हरियाली के उपर फ़ैल जाती है |यह धूप कभी जाड़े की गुनगुनी होती है तो कभी वैशाख की दोपहरी जैसी कड़क होती है |हिन्दी के इस महान कवि विचारक का जन्म अपनी विश्वसनीयता के लिए प्रसिद्ध तालों के शहर, मशहूर शायर शहरयार और गोपाल दास नीरज के शहर अलीगढ़ में 01-11-1943 को हुआ था |शिक्षा -डॉ० प्रेम शंकर ने प्रथम श्रेणी में हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल कर प्रयोगवाद और व्यक्तिवाद पर एम० फ़िल० और आधुनिक हिन्दी कविता में व्यक्तिवाद पर पी० एच० डी० की उपाधि हासिल किया |इन्हें धर्मरत्न की उपाधि सन 1955में प्रदान की गयी |पुस्तकें और प्रकाशन -हिन्दी और उसकी उपभाषाएं,नयी गन्ध [नवगीत संग्रह ],दलितों का चीखता आभाव [कविता संकलन ]अपनी शताब्दी से उपेक्षित [कविता संकलन ]कविता रोटी की भूख तक [कविता संकलन ]इसके अतिरिक्त भी कई शोध पत्र और पुस्तकें इनके द्वारा सम्पादित की गयीं हैं |कई महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित कर चुके डॉ० प्रेम शंकर लाल बहादुर राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मसूरी में प्रोफेसर एवं समन्वयक [हिन्दी एवं प्रादेशिक भाषाएं ]भी रह चुके हैं |डॉ० प्रेमशंकर का विस्तृत परिचय उनके ब्लॉग पर देखा जा सकता है http://drpremshanker.blogspot.com/|स्वभाव से विनम्र और मृदुभाषी डॉ० प्रेम शंकर जी से हिन्दी नवगीत के कुछ विन्दुओं पर की गयी बातचीत यहाँ प्रस्तुत है -
हिन्दी के सुपरिचित नवगीतकार, कवि, आलोचक एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डा0 प्रेमशंकर से हिन्दी नवगीत पर जयकृष्ण राय तुषार की बातचीतः-
प्र0- डा0 प्रेमशंकर जी हिन्दी में नवगीत का उद्भव किन कारणों से हुआ और हिन्दी नवगीत अपने उद्देश्य में कहाँ तक सफल रहा ?
उ0 स्वतंत्रता के उपरान्त जीवन-मूल्यों के बदलाव के कारण युवा पीढ़ी मोह-भंग से आक्रान्त हो रही थी। हिन्दी साहित्य अपनी दिशा तलाश रहा था। हिन्दी कविता की ऐसी ही स्थिति थी। प्रणय सम्बंधी गीतों और स्वतन्त्रता के गीतों के उपरान्त गीत एक नयी दिशा अन्वेषित कर रहा था । सन 1958 में श्री राजेन्द्रप्रसाद सिंह के अंकन के द्वारा नवगीत को अभिहित किया गया। यद्यपि, नवगीत जैसे अनेक गीत इससे पूर्व भी लिखे जा रहे थे, तथापि नवगीत अपने नव युगबोध, नयी रोमानियत एवं नये भावबोध को लेकर विकसित हुआ। आज इस दृष्टि से देखा जाये तो नवगीत पूर्ण सफल है, प्रयोगवाद एवं नयी कविता के छन्दमुक्त नीरस वातावरण से ऊब कर लय और छन्द की बेजोड़ जुगलबन्दी ने उस समय के युवावर्ग को नवगीत के लिए प्रेरित कर दिया। यही नवगीत की सफलता का रहस्य है।
प्र0 - हिन्दी गीत के बासीपन और अतिशय प्रेमालाप की जड़ता को तोड़ने में नवगीत सफल रहा है। आम आदमी गीत का विषय बना, जीवन की विसंगतियाँ गीत का विषय बनी, परन्तु आप हिन्दी नवगीत की उपेक्षित स्थिति को जानते हैं अब नये नवगीतकार लगभग नहीं आ रहे हैं। क्या यह नवगीत का प्रस्थान-विन्दु है?
उ0 हाँ ! यह ठीक है कि गीत के बासीपन और स्थूल प्रेमालाप की भोगवादी जड़ता को तोड़कर नयी रोमानियत दी। इसमें नवगीतकार नायिका का सौंन्दर्य-चित्रण दूर से विविध प्रकार से कर रहा है। यहाँ हालावादियों की तरह स्थिति नहीं है | नायिका को रीतिकालीन स्थूल भोगवाद से नहीं जोड़ा। यह सत्य है कि पिछले कई दशको से नवगीत को कविता, कहानी, नाटक की भाँति महत्व न देकर केवल हाशिए पर रखने का प्रयास ही होता रहा है। हमारे समय में एक गोष्ठियों में आठ-दस नवगीतकार होते थे। परन्तु अब नवगीतकारों को अन्वेषित करना पड़ता है। यद्यपि, यह नवगीत का प्रस्थान-बिन्दु नहीं है, तथापि आज पत्र-पत्रिकाओं में नवगीत बहुतायत में प्रकाशित हो रहे हैं। जनमानस का मन नये गीतों की तरफ नया रूझान पैदा कर रहा है। यह नवगीत के लिए सुखद स्थिति है।
प्र0- नवगीत को मंचीय कवियों के छल-छद्म और पलायन से नुकसान पहुँचाया गया है परन्तु आज हिन्दी नवगीत की आलोचना विकसित नहीं हो सकी है। इस संदर्भ में क्या प्रयास होने चाहिए?
उ0- नवगीत ने अनेक विरोध सहे हैं जैसे,- मंचीय कवियों का छल-छदम और पलायन, छन्दमुक्त कविता के लगभग चालीस काव्य आन्दोलन, अगीत एवं हिन्दी में ग़जल की घुसपैठ आदि। आज नवगीत पुनः आलोचकों की दृष्टि को लुभा रहा है। इसका कारण है अब नवगीत नये ‘रूप’ और ‘कान्टेण्ट’ में युगबोध और भावबोध को व्यक्त कर रहा है। यही इसका निष्कंटक मार्ग है।
प्र0- आप कविता और राजनीति दोनों में कागजी लेखन में जन और जन-सम्बंधों की बातें करते हैं, किन्तु वास्तविक धरातल पर दोनों ही आम आदमी से बहुत दूर होते जा रहे हैं। ऐसा क्यों?
उ0- आज मानवीय जीवन में गति, व्यस्तता, परिस्थिति, विसंगति, अनुभूति आदि के कारण कवि, नवगीतकार एंव लेखक आम आदमी से दूर विदेशी दर्शन से प्रभावित होकर लिख रहे हैं।
प्र0- हिन्दी नवगीत में हिन्दी गीत/नवगीत में तुकान्त के कारण हम बंध जाते हैं तुकान्त का हिन्दी गीत नवगीत में क्या महत्व है?
उ0- गेय रचनाओं में तुकान्त एवं लय महत्वपूर्ण है। छन्द और अलंकार उनके बहुत उपयोगी अंग है जिन पर गीत/नवगीत नयी-नयी धुनी और लय गुंजायमान होता है। हिन्दी गीतकार और नवगीतकार अपनी अनुभूतियों को मीठे बताशे की तरह अपनी अनुभूतियों में घोलकर अभिव्यक्ति के माध्यम से प्रस्तुत करता है। तब तुक, लय, छन्द विविध रूपों में श्रोता और पाठक को आकर्षित करते हैं।
प्र0- आज हिन्दी नवगीत में समानान्तर दोहे और ग़जलें लिखी और सराही जा रही हैं क्या इससे नवगीत को कोई नुकसान की संभावना है?
उ0- ऐतिहासिक साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो दिल्ली के मुगलिया तलवारों में फारसी की ग़जलों के साथ-साथ सवैया की धूम भी मची थी। आज भी हिन्दी में सवैया का अपना स्थान है। उसी प्रकार नवगीत को दोहे और ग़जल से कोई हानि नहीं है, अपितु नवगीत और स्थापित हो रहा है।
प्र0- आप उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष हैं भविष्य में लेखकों कवियों और साहित्य के संदर्भ में आपके मन में क्या है?
उ0- सरकारी योजनाओं में मन नहीं चलता है। जो सरकारी होता है उसमें योजनाबद्ध रूप से समय और वित्त की उपलब्धता देखी जाती है यह अत्यन्त आवश्यक है। मेरी लेखकों, कवियों, और साहित्य की प्रति पूर्ण आस्था है वे मानवीय गरिमा को सुरक्षित रखते हुए दिशा- निर्देश करने वाला साहित्य रचते रहेंगें और राष्ट्र को आगे बढ़ाने में योगदान देगें। मुझे पूर्ण विश्वास है।