 |
कवयित्री -मधु शुक्ला
सम्पर्क -09893104204 |
आज हम आपको एक ऐसी कवयित्री से परिचित करा रहे है, जिनका जन्म तो लालगंज ,रायबरेली उत्तर प्रदेश में हुआ है ,लेकिन कर्मक्षेत्र बना है भोपाल |हिंदी ,संस्कृत में स्नातकोत्तर की उपाधि ,और बी० एड० की उपाधि हासिल करने के बाद मधु शुक्ला संस्कृत साहित्य में राष्ट्रीय विचारधारा पर शोध कर रही हैं |देश की प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में इस कवयित्री की कवितायेँ प्रकाशित होती रहती हैं |समय -समय पर आकाशवाणी और दूरदर्शन के कार्यक्रमों में भी काव्य पाठ में भाग लेती हैं |गीत /नवगीत /गजल और स्वतंत्र लेख मधु शुक्ला के लेखन के पसंदीदा विषय हैं |इस कवयित्री की कवितायेँ सम्वेदना से भरपूर और अपने समय से बातचीत करती हैं |पेशे से शासकीय शिक्षिका मधु शुक्ला का एक गीत और एक गजल आज हम आप सभी तक पहुंचा रहे हैं |
एक -गीत
मन तो चाहे अम्बर छूना
पांव धंसे हैं खाई |
दूर खड़ी हँसती है मुझ पर
मेरी ही परछाई |
विश्वासों की पर्त खुली तो ,
चलती चली गयी ,
सम्बन्धों की बखिया
स्वयं उघड़ती चली गयी ,
चूर हुए हम स्थितियों से
करके हाथापाई |
इच्छाओं का कंचन मृग
किस वन में भटक गया ,
बतियाता था जो मुझसे ,
वह दर्पण चटक गया ,
अपने ही स्वर अब कानों को
देते नहीं सुनाई |
परिवर्तन की जाने कैसी
उल्टी हवा चली ,
धुआँ -धुआँ हो गयी दिशाएं
सूझे नहीं गली ,
जमी हुई हर पगडंडी पर
दुविधाओं की काई |
दो -गज़ल
प्रश्न फिर लेकर खड़ी है जिन्दगी
बात पर अपनी अड़ी है जिन्दगी
जोड़ -बाकी -भाग का ये सिलसिला
बस सवालों की झड़ी है जिन्दगी
रंग कितने रूप कितने नाम हैं
पर अभी तक अनगढ़ी है जिन्दगी
उम्र तय करती गयी लंबा सफर
राह में ठिठकी खड़ी है जिन्दगी
खुल रहा हर दिन नए अध्याय सा
अनुभवों की एक कड़ी है जिन्दगी
पढ़ न पाया आज तक कोई जिसे
क्या कठिन बारहखड़ी है जिन्दगी
जी चुके इक उम्र तो अनुभव हुआ
प्यार की बस दो घडी है जिन्दगी
हम जिये कब साँस भर लेते रहे
क्या अजब धोखाधड़ी है जिन्दगी
दे न पाई अर्थ अब तक शब्द को
फांस सी मन में गड़ी है जिन्दगी
हार में भी जीत की एक आस है
बस उम्मीदों की लड़ी है जिन्दगी