चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
इस सुनहरी धूप में
कुछ देर बैठा कीजिए |
आज मेरे हाथ की
ये चाय ताजा पीजिए |
भोर में है आपका रूटीन
चिड़ियों की तरह ,
आप कब रुकतीं ,हमेशा
नयी घड़ियों की तरह ,
फूल हँसते हैं सुबह
कुछ आप भी हँस लीजिए |
दर्द पाँवों में उनींदी आँख
पर उत्साह मन में ,
सुबह बच्चों के लिए
तुम बैठती -उठती किचन में ,
कालबेल कहती बहनजी
ढूध तो ले लीजिए |
मेज़ पर अखबार रखती
बीनती चावल ,
फिर चढ़ाती देवता पर
फूल अक्षत -जल ,
पल सुनहरे ,अलबमों के
बीच मत रख दीजिए |
,
,
हैं कहाँ तुमसे अलग
एक्वेरियम की मछलियाँ ,
अलग हैं रंगीन पंखों में
मगर ये तितलियाँ ,
इन्हीं से कुछ रंग ले
रंगीन तो हो लीजिए |
तुम सजाती घर
चलो तुमको सजाएँ ,
धुले हाथों पर
हरी मेहँदी लगाएं ,
चाँद सा मुख ,माथ पर
sundar
ReplyDeleteइस सुनहरी धुप में किसी को आमंत्रित करना और उसके साथ समय बिताने का अपना मजा है ...आपने बहुत सुंदर तरीके से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया है .....आपका आभार
ReplyDeleteमेज़ पर अखबार रखती
ReplyDeleteबीनती चावल ,
फिर चढ़ाती देवता पर
फूल अक्षत -जल ,
पल सुनहरे ,अलबमों के
बीच मत रख दीजिए |
,waah
इस सुनहरी धूप में
ReplyDeleteकुछ देर बैठा कीजिए |
आज मेरे हाथ की
ये चाय ताजा पीजिए |
वाह.....वाह.
ताजा चाय का प्रयोग तो लाजवाब है !
वाह! क्या बात है सरल,सरस ,कुछ चुलबुलाती और प्यार का अहसास कराती आपकी अनुपम प्रस्तुति का.आभार
ReplyDelete• ताज़ा बिम्बों-प्रतीकों-संकेतों से युक्त आपकी कविता की भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम भर नहीं, जीवन की तहों में झांकने वाली आंख है। इस कविता का काव्य-शिल्प हमें सहज ही आपकी भाव-भूमि के साथ जोड़ लेता है। चित्रात्मक वर्णन कई जगह बांधता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर, बधाई स्वीकार कीजिए
ReplyDeleteहैं कहाँ तुमसे अलग
ReplyDeleteएक्वेरियम की मछलियाँ
अलग हैं रंगीन पंखों में
मगर ये तितलियाँ
इन्हीं से कुछ रंग ले
रंगीन तो हो लीजिए ।
गीत का लालित्य मोहक है। मौलिक भावभूमि पर उकेरा गया यह गीत किसी नयनाभिराम चित्र से कम नहीं।
इस अनुपम रचना के लिए बधाई, तुषार जी।
is garmi ki kadak dhoop ke bavjood apke blog per sunheri dhoop paker sukoon ka anubhav prapt hua...... Dhanyawad....
ReplyDeleteतुम सजाती घर
ReplyDeleteचलो तुमको सजाएँ ,
धुले हाथों पर
हरी मेहँदी लगाएं ,
चाँद सा मुख ,माथ पर
सूरज उगा तो लीजिए |
Kitna pyara-sa khayal hai!
NAMAKSAAR !
ReplyDeleteBEHAD SUNDER RACHANA
SADHUWAD !
हैं कहाँ तुमसे अलग
ReplyDeleteएक्वेरियम की मछलियाँ ,
अलग हैं रंगीन पंखों में
मगर ये तितलियाँ ,
इन्हीं से कुछ रंग ले
रंगीन तो हो लीजिए |
शब्दों और भावों का बेजोड संगम...कविता का प्रवाह अद्वितीय..आपकी रचना ने निशब्द कर दिया..बधाई
lovely expression....
ReplyDeleteतुम सजाती घर
ReplyDeleteचलो तुमको सजाएँ ,
धुले हाथों पर
हरी मेहँदी लगाएं ,
चाँद सा मुख ,माथ पर
सूरज उगा तो लीजिए |
वाह ... बहुत खूबसूरत पंक्तियां ।
man ko gudgudati panktiyaan..awesome!
ReplyDeleteआपका रचना संसार वृहद् एवम प्रभावी है सारी रचना उत्कृष्ट है . कविता का प्रवाह अद्वितीय है. आपकी कविता का साँचा मन को बहुत रुचा. और इस साँचे में ढाल दिये भाव को.बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteआप सभी ने इस कविता /गीत को पसंद किया आभार
ReplyDelete