Saturday, 9 April 2011

एक प्रेम गीत -देखकर तुमको फिरोजी दिन हुए

चित्र -गूगल सर्च इंजन  से साभार 
देखकर तुमको फिरोजी  दिन हुए 

तुम्हें देखा 
भूल बैठा मैं 
काव्य के सारे सधे  उपमान |
ओ अपरिचित ! 
लिख रहा तुमको 
रूप का सबसे बड़ा प्रतिमान |

देख तुमको 
खिलखिलाते फूल 
जाग उठती शांत जल की झील ,
खिड़कियों को 
गन्ध कस्तूरी मिली 
जल उठी मन की बुझी कंदील ,
इन्द्रधनु सा 
रूप तेरा देखकर 
हो रहे पागल हिरन ,सीवान |


मौन  जंगल सज 
रहीं  संगीत संध्याएं  
खुले चिड़ियों के नये स्कूल,
कभी रक्खे थे 
किताबों में जिन्हें 
मोरपंखों को गये हम भूल ,
तू शरद की 
चाँदनी शीतल 
और हम दोपहर के दिनमान |


हाशिये  नीले ,हरे होने लगे 
लौट आये 
फिर कलम के दिन,
कल्पनाओं के 
गुलाबी पंख ओढ़े 
हम तुम्हें लिखने लगे पल -छिन 
हमें जाना था 
मगर हम रुक गये 
खोलकर बांधा हुआ  सामान |


देखकर तुमको 
फिरोजी दिन हुए 
हवा में उड़ता हरा रुमाल ,
फिर कहीं 
गुस्ताख भौरें ने छुआ 
फूल का बायां गुलाबी गाल ,
सज गए फिर 
मेज़ ,गुलदस्ते 
पी रहे  काफ़ी सुबह से लाँन |

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 

17 comments:

  1. यह तो प्रेमोत्सव का पूरा अभियान-आह्वान है!
    एक मन को छूती श्रृंगारिक -रूमानी कविता !

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर.... प्रेम के कोमल भाव लिए मनमोहक अभिव्यक्ति....

    ReplyDelete
  3. अजनबी
    मैं लिख रहा तुमको
    रूप का सबसे बड़ा प्रतिमान |

    गीत मन के खेत झरते हैं ,

    खुले चिड़ियों के नये स्कूल ,

    रातरानी की
    महक से दिन जगे
    चल पड़े ये रास्ते सुनसान |

    तुषार जी,
    यह वाक्य विन्यास कस्तूरी की भीनी महक की तरह मन को महका गए

    बहुत सुन्दर प्रेमगीत के लिए ढेरों बधाई

    ReplyDelete
  4. तू शरद की
    चाँदनी शीतल
    दोपहर के हम हुए दिनमान |

    सुन्दर उपमाओं की सुन्दर काव्यपंक्तियां.
    लाजवाब....
    आपकी सुन्दर लेखनी को आभार...

    ReplyDelete
  5. मौन जंगल में
    सजी संगीत संध्याएं
    खुले चिड़ियों के नये स्कूल,
    कभी रक्खे थे
    किताबों में जिन्हें
    मोरपंखों को गये हम भूल,
    तू शरद की
    चाँदनी शीतल
    और हम दोपहर के दिनमान ।

    नव-प्रतीकों-पुष्पों से सजा प्रेम का एक खूबसूरत गुलदस्ता है यह कविता।
    बधाई, तुषार जी।

    ReplyDelete
  6. हमें जाना था
    मगर हम रुक गये
    खोलकर बांधा हुआ सामान |


    ओये होए ....
    तुषार जी तस्वीर भी उसी की लगाते तो था न ....
    खुशनसीब है वो जिसके लिए ये सुंदर कविता लिखी गई ...

    इस नयनाभिराम की बधाई .....

    ReplyDelete
  7. vakai rumaniyat se likha hai...lovely!

    ReplyDelete
  8. आदरणीया हरकीरत जी कवियों की दुनियां काल्पनिक होती है |ऐसा कोई है नहीं जिसका चित्र लगाना पड़े यह कविता बिलकुल काल्पनिक है |इतनी सुंदर प्रेमिका मिल जाय तो कविता लिखने का समय ही नहीं मिलेगा |सुंदर कमेंट्स के लिए पारुल सहित डॉ० वर्षा डॉ० अरविन्द जी डॉ० मोनिका जी भाई वीनस जी भाई महेंद्र जी और अभी आने वाले मित्रों का हृदय से आभार |

    ReplyDelete
  9. वाह !!! बहुत सुन्दर गीत, चारों अंतरे बेहतरीन हैं| एक सप्ताह में ये दूसरा श्रृंगारिक गीत ...तुषार जी बहुत बढ़िया|

    ReplyDelete
  10. 'dekh kar tumko phiroji din huaa'rach diya maine gulabi geet.tay karana muskil hai ki rachna adhik sundar hai ya rachna ka uts.badhi,bahut hi achchhe geet ke liye.

    ReplyDelete
  11. इतनी सुंदर प्रेमिका मिल जाय तो कविता लिखने का समय ही नहीं मिलेगा |

    ha ha ha

    yah ho :)

    ReplyDelete
  12. यह प्रेमगीत आप सबको पसंद आया आप सभी का आभार |

    ReplyDelete
  13. यह प्रेमगीत आप सबको पसंद आया आप सभी का आभार |

    ReplyDelete
  14. मौन जंगल सज
    रहीं संगीत संध्याएं
    खुले चिड़ियों के नये स्कूल,
    कभी रक्खे थे
    किताबों में जिन्हें
    मोरपंखों को गये हम भूल ,
    तू शरद की
    चाँदनी शीतल
    और हम दोपहर के दिनमान |

    Sundar geet

    ReplyDelete
  15. man ki komal bhavnaon ko chhoo lene wala ek sunder premgeet.sach sundarta ek ehsas hai.hope karta hoon ki aagebhi aise geet blog par milenge.thanks a lot.

    ReplyDelete
  16. Wah Wah Kya bat hai Tushar Ji.
    amit

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -नया साल

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -आगाज़ नए साल का भगवान नया हो  मौसम की कहानी नई उनवान नया हो  आगाज़ नए साल का भगवान नया हो  फूलों पे तितलियाँ हों ब...