चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
तुम्हें देखा
भूल बैठा मैं
काव्य के सारे सधे उपमान |
ओ अपरिचित !
लिख रहा तुमको
लिख रहा तुमको
रूप का सबसे बड़ा प्रतिमान |
देख तुमको
खिलखिलाते फूल
जाग उठती शांत जल की झील ,
खिड़कियों को
गन्ध कस्तूरी मिली
जल उठी मन की बुझी कंदील ,
जाग उठती शांत जल की झील ,
खिड़कियों को
गन्ध कस्तूरी मिली
जल उठी मन की बुझी कंदील ,
इन्द्रधनु सा
रूप तेरा देखकर
हो रहे पागल हिरन ,सीवान |
मौन जंगल सज
रहीं संगीत संध्याएं
खुले चिड़ियों के नये स्कूल,
कभी रक्खे थे
किताबों में जिन्हें
किताबों में जिन्हें
मोरपंखों को गये हम भूल ,
तू शरद की
चाँदनी शीतल
और हम दोपहर के दिनमान |
हाशिये नीले ,हरे होने लगे
लौट आये
फिर कलम के दिन,
कल्पनाओं के
गुलाबी पंख ओढ़े
हम तुम्हें लिखने लगे पल -छिन
हमें जाना था
मगर हम रुक गये
खोलकर बांधा हुआ सामान |
देखकर तुमको
फिरोजी दिन हुए
हवा में उड़ता हरा रुमाल ,
फिर कहीं
गुस्ताख भौरें ने छुआ
फूल का बायां गुलाबी गाल ,
सज गए फिर
मेज़ ,गुलदस्ते
पी रहे काफ़ी सुबह से लाँन |
हाशिये नीले ,हरे होने लगे
लौट आये
फिर कलम के दिन,
कल्पनाओं के
गुलाबी पंख ओढ़े
हम तुम्हें लिखने लगे पल -छिन
हमें जाना था
मगर हम रुक गये
खोलकर बांधा हुआ सामान |
देखकर तुमको
फिरोजी दिन हुए
हवा में उड़ता हरा रुमाल ,
फिर कहीं
गुस्ताख भौरें ने छुआ
फूल का बायां गुलाबी गाल ,
सज गए फिर
मेज़ ,गुलदस्ते
पी रहे काफ़ी सुबह से लाँन |
यह तो प्रेमोत्सव का पूरा अभियान-आह्वान है!
ReplyDeleteएक मन को छूती श्रृंगारिक -रूमानी कविता !
बहुत सुंदर.... प्रेम के कोमल भाव लिए मनमोहक अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteअजनबी
ReplyDeleteमैं लिख रहा तुमको
रूप का सबसे बड़ा प्रतिमान |
गीत मन के खेत झरते हैं ,
खुले चिड़ियों के नये स्कूल ,
रातरानी की
महक से दिन जगे
चल पड़े ये रास्ते सुनसान |
तुषार जी,
यह वाक्य विन्यास कस्तूरी की भीनी महक की तरह मन को महका गए
बहुत सुन्दर प्रेमगीत के लिए ढेरों बधाई
तू शरद की
ReplyDeleteचाँदनी शीतल
दोपहर के हम हुए दिनमान |
सुन्दर उपमाओं की सुन्दर काव्यपंक्तियां.
लाजवाब....
आपकी सुन्दर लेखनी को आभार...
मौन जंगल में
ReplyDeleteसजी संगीत संध्याएं
खुले चिड़ियों के नये स्कूल,
कभी रक्खे थे
किताबों में जिन्हें
मोरपंखों को गये हम भूल,
तू शरद की
चाँदनी शीतल
और हम दोपहर के दिनमान ।
नव-प्रतीकों-पुष्पों से सजा प्रेम का एक खूबसूरत गुलदस्ता है यह कविता।
बधाई, तुषार जी।
हमें जाना था
ReplyDeleteमगर हम रुक गये
खोलकर बांधा हुआ सामान |
ओये होए ....
तुषार जी तस्वीर भी उसी की लगाते तो था न ....
खुशनसीब है वो जिसके लिए ये सुंदर कविता लिखी गई ...
इस नयनाभिराम की बधाई .....
vakai rumaniyat se likha hai...lovely!
ReplyDeleteआदरणीया हरकीरत जी कवियों की दुनियां काल्पनिक होती है |ऐसा कोई है नहीं जिसका चित्र लगाना पड़े यह कविता बिलकुल काल्पनिक है |इतनी सुंदर प्रेमिका मिल जाय तो कविता लिखने का समय ही नहीं मिलेगा |सुंदर कमेंट्स के लिए पारुल सहित डॉ० वर्षा डॉ० अरविन्द जी डॉ० मोनिका जी भाई वीनस जी भाई महेंद्र जी और अभी आने वाले मित्रों का हृदय से आभार |
ReplyDeleteवाह !!! बहुत सुन्दर गीत, चारों अंतरे बेहतरीन हैं| एक सप्ताह में ये दूसरा श्रृंगारिक गीत ...तुषार जी बहुत बढ़िया|
ReplyDelete'dekh kar tumko phiroji din huaa'rach diya maine gulabi geet.tay karana muskil hai ki rachna adhik sundar hai ya rachna ka uts.badhi,bahut hi achchhe geet ke liye.
ReplyDeleteइतनी सुंदर प्रेमिका मिल जाय तो कविता लिखने का समय ही नहीं मिलेगा |
ReplyDeleteha ha ha
yah ho :)
यह प्रेमगीत आप सबको पसंद आया आप सभी का आभार |
ReplyDeleteयह प्रेमगीत आप सबको पसंद आया आप सभी का आभार |
ReplyDeleteमौन जंगल सज
ReplyDeleteरहीं संगीत संध्याएं
खुले चिड़ियों के नये स्कूल,
कभी रक्खे थे
किताबों में जिन्हें
मोरपंखों को गये हम भूल ,
तू शरद की
चाँदनी शीतल
और हम दोपहर के दिनमान |
Sundar geet
Very nice
ReplyDeleteman ki komal bhavnaon ko chhoo lene wala ek sunder premgeet.sach sundarta ek ehsas hai.hope karta hoon ki aagebhi aise geet blog par milenge.thanks a lot.
ReplyDeleteWah Wah Kya bat hai Tushar Ji.
ReplyDeleteamit