चित्र-साभार गूगल |
एक गीत-
मौसम का सन्नाटा टूटे
हँसना
हल्की आँख दबाकर
मौसम का सन्नाटा टूटे ।
हलद पुती
गोरी हथेलियों
से अब कोई रंग न छूटे ।
भ्रमरों के
मधु गुँजन वाले
आँगन में चाँदनी रात हो,
रिश्तों में
गुदगुदी समेटे
बच्चों जैसी चुहुल,बात हो,
दीप जले
तुलसी चौरे पर
कोई मंगल कलश न फूटे ।
माथे पर
चन्दन सा छूकर
शीतल पवन घरों में आए,
जब-जब छाती
फटे झील की
तानसेन मल्हार सुनाए,
धानी-हरी
घास पर कोई
नंगे पाँव न काँटा टूटे ।
वंशी का
माधुर्य हवाएँ
लेकर लौटें वृन्दावन से,
कृष्ण बसे तो
निकल न पाए
प्रेममूर्ति राधा के मन से,
राग-द्वेष
नफ़रत को कोई
आकर के ओखल में कूटे ।
चित्र-साभार गूगल |
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 10/05/2019 की बुलेटिन, " प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की १६२ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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