चित्र -गूगल से साभार |
राजनीति के
नियम न जानें
फिर भी राजदुलारे हैं |
राजमहल की
बुनियादों पर
गिरती ये दीवारें हैं |
सबकी प्यास
बुझाने वाले
मीठे झरने सूखे हैं ,
गोदामों में
सड़ते गेहूँ
और प्रजाजन भूखे हैं ,
अब तो
केवल अपनी प्यास
बुझाते ये फव्वारे हैं |
चुप्पी ओढ़
परिन्दे सोये
सारा जंगल राख हुआ ,
वनराजों का
जुर्म हमेशा ही
जंगल में माफ़ हुआ ,
कैसे -कैसे
राजा ,मंत्री
कैसे अब हरकारे हैं |
क्रान्ति
सिताब -दियारा से हो
या दांडी के रस्ते हो ,
संसद में
जाकर के प्यारे
बस जनता पर हँसते हो ,
रथयात्राएं
कितनी भी हों
हम हारे के हारे हैं |
राजघाट भी
जाना हो तो चलें
लिमोजिन कारों से ,
अब समाजवादी,
जननायक ,
आते पांच सितारों से ,
हम शीशे की
बन्द दीवारों में
धुंधलाए पारे हैं |
जब भी हम
चेहरे को देखें
धुँधले दरपन आते हैं ,
सिर्फ़
रागदरबारी
सत्ता के खय्याम सुनाते हैं ,
परिवर्तन
विकास की बातें
महज किताबी नारे हैं |
वनराजों का
ReplyDeleteजुर्म हमेशा ही
जंगल में माफ़ हुआ ,
बहुत खूब....बेहतरीन रचना...और साथ में लगा चित्र तो बेमिसाल है...बधाई स्वीकारें
नीरज
परिवर्तन
ReplyDeleteविकास की बातें
महज किताबी नारे हैं |
सच है.... बहुत उम्दा रचना
राजघाट पर
ReplyDeleteफूल चढ़ाने गए
लिमोजिन कारों में ,
ये समाजवादी
जननायक
रहते पांच सितारों में ,
बेहतरीन अल्फाजों में ,यथार्थ चित्रण बहुत पसंद आया ... बहुत-2 शुभ-कामनाएं राय साहब /
सन्नाट व्यंग है।
ReplyDeleteआपका आक्रोश भी बहुत शालीन होता है...मेरे विचार से सभी पार्टियों को बैठ के भारत का मास्टर प्लान बनाना चाहिए...सरकार चाहे कोई भी हो दिशा एक ही हो...नहीं तो नई सरकार पिछले को अन डू करने में ही लग जाती है...
ReplyDeleteचुप्पी ओढ़ परिन्दे सोये
ReplyDeleteसारा जंगल राख हुआ ,
वनराजों का जुर्म हमेशा ही
जंगल में माफ़ हुआ ,
कैसे -कैसे राजा ,मंत्री
कैसे अब हरकारे हैं |
इस कविता में बाज़ारवाद और वैश्वीकरण के इस दौर में अधुनिकता और प्रगतिशीलता की नकल और चकाचौंध में किस तरह हमारी ज़िन्दगी घुट रही है प्रभावित हो रही है, उसे आपने दक्षता के साथ रेखांकित किया है। बिल्कुल नए सोच और नए सवालों के साथ समाज की मौज़ूदा जटिलता को उजागर कर आपने सोचने पर विवश कर दिया है।
आदरणीय भाई मनोज जी ,भाई नीरज जी ,डॉ० मोनिका शर्मा जी ,भाई उदयवीर जी भाई प्रवीण पाण्डेय जी और भाई वाणभट्ट जी आपकी बहुमूल्य टिप्पणियों से मुझे लिखने में मदद मिलती है आप सभी का हृदय से आभार |
ReplyDeleteराजघाट भी
ReplyDeleteजाना हो तो चलें
लिमोजिन कारों से ,
अब समाजवादी,
जननायक ,
आते पांच सितारों से ,
हम शीशे की
बन्द दीवारों में
धुंधलाए पारे हैं |
आज के हालत पर गंभीर कटाक्ष. चित्र तो सुभानल्लाह. बहुत बधाई.
वाह बड़ा ही सशक्त रच डाला है आज के हालात पर ..बधाई !
ReplyDeleteसशक्त कटाक्ष.......
ReplyDeleteवनराजों का
ReplyDeleteजुर्म हमेशा ही
जंगल में माफ़ हुआ....
जबरदस्त... प्रहारक रचना...
सादर बधाई...
सही और सटीक अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-666,चर्चाकार-दिलबाग विर्क
बहुत ही सुंदर रचना !!
ReplyDeletemujhe to aapki rachnayen hamesha hi anoothi lagti hain!
ReplyDeleteआदरणीय डॉ० अरविन्द मिश्र जी ,रचना जी निवेदिता जी ,एस० एम० हबीब जी इस्मत जैदी जी रेखा जी दिलबाग विर्क जी और .....पारुल जी आप सभी का हृदय से आभार |
ReplyDeletehar bar ki tarah sunder ......satik chitran .....sab kuch itni khubsurti se ukera hai ........ salam hamara apko .
ReplyDeleteapkai rachnaye saralta se sara chitran shikayton ke saath kar deti hai aur pata hi nahi chalta .sabhi pasand aati hai .
dipawali ki shubhkamnaye ......advance mai .
शशि पुरवार जी आपका हृदय से आभार
ReplyDeleteअपनी प्यास बुझाते फव्वारे
ReplyDeleteवाह वाह वाह, तुषार जी आप शब्दों के साथ कुशलता से सैर सपाटे करते हैं। बहुत खूब।
गुजर गया एक साल
तुषार जी नमस्कार, आप मेरे ब्लाग पर आये अपनी उत्साह भरी शब्दावली मेरी रचना को प्रदान किया आपकी यह रचना बड़ी सशक्त है ओजपूर्ण पक्तिं- वन राजो का-------परिवर्तन------- जयहिन्द्।
ReplyDeleteराख़ पर भी हाथ.. अब साफ़ हुआ. .. प्रभावी रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteचुप्पी ओढ़
ReplyDeleteपरिन्दे सोये
सारा जंगल राख हुआ ,
वनराजों का
जुर्म हमेशा ही
जंगल में माफ हुआ ,
कैसे -कैसे
राजा ,मंत्री
कैसे अब हरकारे हैं द्य
क्या बात है, बहुत सुंदर गीत।
इतना झन्नाटेदार व्यंग ..वह भी इतने सुन्दर गीत में !
ReplyDeleteअति सुन्दर तुषार भाई , अति सुन्दर
चुप्पी ओढ़
ReplyDeleteपरिन्दे सोये
सारा जंगल राख हुआ ,
वनराजों का
जुर्म हमेशा ही
जंगल में माफ़ हुआ ,
कैसे -कैसे
राजा ,मंत्री
कैसे अब हरकारे हैं |
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बेहतरीन पंक्तियाँ
बेहतरीन गीत
सटीक!
ReplyDeleteबेहतरीन कटाक्ष।
ReplyDeleteसत्य को कहती बहुत अच्छी रचना ... आभार
ReplyDeleteजंगल में माफ हुआ ,
ReplyDeleteकैसे -कैसे
राजा ,मंत्री
कैसे अब हरकारे हैं द्य
क्या बात है, बहुत सुंदर गीत।