Sunday, 17 August 2025

एक ग़ज़ल -यादों के आसपास रहा

 

चित्र साभार गूगल

तमाम फूल, तितलियों में भी उदास रहा 

बिछड़ने वाला ही यादों के आसपास रहा 

जहाँ भी फूल थे शाखों पे खिलखिलाते रहे 
हवा के साथ उड़ानों में बस कपास रहा 

तमाम ग़म को छिपाए हँसी की चादर से 
गुलाम मुल्क में जैसे वो क्रीत दास रहा 

जो पेड़ आज परिंदो का आशियाना है 
वसंत आने के पहले वो बेलिबास रहा 

किसी के आने की आहट थी चाँदनी की तरह 
तमाम रात अँधेरे में भी उजास रहा 

न मोर पंख न तितली,नदी, हिरण भी नहीं 
ये गाँव गाँव नहीं था ये बस नख़ास रहा 

हमेशा अजनबी रस्तों में काम आते रहे 
शिकस्त उससे मिली जो हमारा खास रहा 

सलोने रंग में उलझे जो देवदास बने
जो स्याम रंग में डूबा वो सूरदास रहा

जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल


10 comments:

  1. वाह्ह.. लाज़वाब गज़ल.सर।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. वाह वाह वाह बहुत सुंदर रचना

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    Replies
    1. हार्दिक आभार मित्र. सादर अभिवादन

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  3. सुंदर गीत

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  4. Replies
    1. आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन

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  5. वाह शानदार...क्या खूब कहा- हमेशा अजनबी रस्तों में काम आते रहे
    शिकस्त उससे मिली जो हमारा खास रहा ...वाह

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    Replies
    1. आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन. अलका जी

      Delete

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