Sunday, 22 December 2024

एक ग़ज़ल -ख़्वाब किसने भर दिया

 

ग़ज़ल 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -

जब कभी थककर के लौटा गोद में सर धर दिया 

माँ ने अपने जादुई हाथों से चंगा कर दिया 


फूल, खुशबू, तितलियाँ, नदियाँ, परी सब रंग थे 

नींद में आँखों में ऐसा ख़्वाब किसने भर दिया 


मौन रहकर भी किसी के दिल का किस्सा पढ़ लिए 

आँखों से आँखों को उसने सब इशारा कर दिया 


बर्फबारी, अग्निवर्षा, धूप, ओले, आधियाँ 

मौसमों ने बस हरे पेड़ों को सारा डर दिया 


नर्मदा, गिरिनार, सिद्धाश्रम है संतों की जगह 

जिसको जैसी है जरूरत उसको वैसा घर दिया 


जो भी माँगा दे दिए परिणाम की चिंता न थी 

देवताओं ने हमेशा राक्षसों को वर दिया 


पाँव हिरणों को मछलियों को नदी का जल दिया 

आसमाँ छूना था जिसको बस उसी को पर दिया 


बांसुरी और शंख होठों पर सजाकर देखिए 

वक़्त ने बेज़ान चीजों को भी मीठा स्वर दिया 


कवि /शायर 

जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 



Wednesday, 18 December 2024

कुछ सामयिक दोहे


कुछ सामयिक दोहे 

चित्र साभार गूगल 



मौसम के बदलाव का कुहरा है सन्देश 

सूरज भी जाने लगा जाड़े में परदेश 


हिरनी आँखों में रहें रोज सुनहरे ख़्वाब 

सबके मन उपवन रहें खुशबू और गुलाब 


कोई भी अपना नहीं दुनिया माया जाल 

ख़्वाब कमल के देखता दिनभर सूखा ताल 


जिससे मन की बात हो वह ही सबसे दूर 

आओ मन फिर से पढ़ें तुलसी, मीरा, सूर 


कुछ क्षण ही आकाश में चाँद, चाँदनी, नूर 

सुख के दिन उड़ते रहे जैसे खुले कपूर 


फिर से जगमग हो गए गंगा -यमुना तीर 

घाटों पर जलते दिए खुशबू लिए समीर 


महिमा गाते कुम्भ की सारे वेद -पुरान 

तीर्थराज में कीजिए दान और स्नान 


राम मिलेंगे आपको बनिए खुद हनुमान 

भक्तों के आधीन हैं देव और भगवान 


सबसे हाथ मिलाइये सबसे करिए प्यार 

बुलडोज़र से टूटता नफ़रत का बाजार 


कुहरे से डरिये नहीं इसके बाद वसंत 

मिलते हैं मधुमास में सुंदर फूल अनंत


इस चिड़िया को याद है हर मौसम का गीत 

अधरों में जैसे छुपा वंशी का संगीत


चित्र साभार गूगल 
कवि जयकृष्ण राय तुषार 


Saturday, 14 December 2024

ग़ज़ल -गगन का चाँद भी छत से

 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -


कभी लहरों पे तिरते हैं कभी मिलते सफीनों पर 

परिंदे हैं ये संगम के नहीं रहते जमीनों पर 


ग़ज़ल के शेर अब मज़दूर की गलियों में मिलते हैं 

कभी शायर ग़ज़ल कहते थे शाहों और हसीनों पर 


किताबों को सजाने में कहाँ आराम मिलता है 

हर ऊँगली थक के सो जाती हैं टाइप की मशीनों पर 


ज़रा सी प्रूफ़ की गलती ग़ज़ल को बेबहर कर दे 

असर अच्छा नहीं होता सहज पाठक, ज़हीनों पर 


महकते फूल की खुशबू चमन तक खींच लाती है 

गगन का चाँद भी छत से उतर आता है जीनों पर 


चमक सोने या हीरे की नहीं कुछ और है शायद 

किसी का नाम लिक्खा है अंगूठी के नगीनों पर 


नमन करते हैं हम अपने वतन के उन शहीदों को 

जिन्होंने हॅसते हँसते गोलियाँ खाई थी सीनो पर 


(साहित्य की किताबों को टाइप करने वाले और उसे लेखक और पाठक तक जाने लायक बनाने वाले भाई संगमलाल श्रीवास्तव सहित देश भर के साहित्यिक किताबों के टाईपिस्टों एवं प्रूफ़ रीडर्स को समर्पित )

भाई संगमलाल श्रीवास्तव 


एक पुराना होली गीत. अबकी होली में

   चित्र -गूगल से साभार  आप सभी को होली की बधाई एवं शुभकामनाएँ  एक गीत -होली  आम कुतरते हुए सुए से  मैना कहे मुंडेर की | अबकी होली में ले आन...