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चित्र साभार गूगल |
एक गीत -आओ फिर "पाँच जोड़ बॉसुरी" बजायें
आओ फिर
"पाँच जोड़
बॉसुरी" बजायें.
ठूँठ पेड़
बंज़र के
गीत गुनगुनायें.
चाँद को
बहुत देखा
भूख प्यास लिखना,
प्यास भरी
बस्ती में
गंगा सा दिखना,
धूप से
मुख़ातिब हों
तरु की छायायें.
सूखती नदी
के तट
फूलों का खिलना,
पगडण्डी
ओस भरे
खेतों से मिलना,
हिरनों की
टोली संग
चरती हों गायें.
घिसे -पिटे
बिम्बोँ
उपमानों से निकलें,
गीतों का
तंत्र मंत औ
तिलस्म बदलें,
गौरैया
बनकर फिर
धूल में नहायें.
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |