चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -चांदनी थी तुम
चांदनी थी
तुम ! धुँआ सी
हो गयी तस्वीर | |
हो गयी तस्वीर | |
मन तुम्हारा
पढ़ न पाए
असद ,ग़ालिब ,मीर |
घोंसला तुमने
बनाया
मैं परिंदों सा उड़ा ,
वक्त की
पगडंडियों पर
जब जहाँ चाहा मुड़ा .
और तेरे
पांव में
हर पल रही जंजीर |
खनखनाते
बर्तनों में
लोरियों में गुम रही .
घन अँधेरे में
दिए की लौ
सरीखी तुम रही ,
आंधियां
जब भी चलीं
तुम हो गयी प्राचीर |
पत्थरों में भी
अनोखी
मूर्तियाँ गढ़ती रही ,
एक दस्तावेज
अलिखित
रोज तुम पढ़ती रही ,
अलिखित
रोज तुम पढ़ती रही ,
ताल के
शैवाल में तुम
खिली बन पुण्डीर |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-04-2016) को "गुज़र रही है ज़िन्दगी" (चर्चा अंक-2304) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'