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चित्र -गूगल से साभार |
फूलों की घाटी में मौसम
फूलों की
घाटी में मौसम की
फूलों की
घाटी में मौसम की
हथेलियाँ रंगीं खून से |
ओ सैलानी !
अब मत जाना
प्रकृति रौदने इस जूनून से |
बे-मौसम
फट गए झील में
कालिदास के विरही बादल ,
नहीं आचमन
के लायक अब
मंदाकिनियों के पवित्र जल ,
मंगल कलश
अमंगल लेकर
लौटे घाटी और दून से |
देवदार से
आच्छादित वन
शोक गीत गाने में उलझे ,
इस रहस्यमय
जलप्लावन के
प्रश्न अभी भी हैं अनसुलझे ,
ओ हिमगिरि
क्यों इतनी नफ़रत
तुम्हेँ हो गयी मई -जून से |
ओ बदरी -केदार !
तुम्हारी शांति -भंग
के हम हैं दोषी ,
अब बुरुंश के
फूलों ने भी
तोड़ दिया अपनी ख़ामोशी ,
रस्ते वही
अगम्य हो गए
बरसों तक जो थे प्रसून से |
इन्द्रधनुष की
मोहक आभा
पल-भर में ही प्रलय हो गई ,
अंतहीन
लालच मानव की
देख प्रकृति की भृकुटी तन गई ,
दर्द पहाड़ों का
भी पढ़ना होगा